विकास मेश्राम
मानगढ़ धाम, राजस्थान
विरासत स्वराज यात्रा की जरुरत क्यों है? यह यात्रा आज की जरुरत के साथ गांधी का एहसास और जोड़ने का काम करेगी। हम सभी के धर्मो को जोड़ने वाली सूफी परम्परा और समाज को जोड़ने वाली मीरा बाई है। मीरा बाई गांधी के काम व सूफी परम्परा की महान विरासत है। वो निर्भय होकर, आजादी से अपने भगवान को सम्मान से स्वीकारती थी। बिना किसी से डरे उन्होंने भगवान को स्वीकार किया था।
''भारत के जीवन को बनाने वाली विरासत - जल, जंगल, जमीन, भारत को प्रेरित करने वाली विरासत गांधी, मीरा, विनोबा, इन सब को समझकर ऊर्जा लेने की जरूरत है।''
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अक्टूबर 2021 को महात्मा गांधी बापू की जयंती के अवसर पर ‘विश्व विरासत
स्वराज यात्रा’ वागधारा के प्रांगण से आरंभ हुई है। इस अवसर पर यात्रा की
संयोजक आशा बहिन और वागधारा के सचिव श्री जयश जोशी और क्षेत्र के सैकड़ों
सामाजिक कार्यकर्ता मौजूद थे। आज विश्व विरासत को बचाने की जरुरत क्यों है?
क्योंकि, हमारे लालची विकास ने हमारी विरासत को नष्ट करने, बिगाड़ने,
विकृत करने का काम किया है। इसलिए हमारी प्राकृतिक विरासत, मानवीय विरासत
सभी पर अतिक्रमण, प्रदूषण और शोषण की मार आ गई है। इन्हें बचाने के लिए
चेतना की जरुरत है। आज इस विषय पर बोलते हुई आशा बहिन ने कहा कि, हमारी
खेती विरासत, हमारी जल विरासत, हमारी गांधी, गौतम आदि की जो प्ररेणादायी
विरासत है।
इन सभी पर आये संकट का समाधान करने के लिए भारतीय ज्ञानतंत्र से
समझना और सीखना होगा और फिर समाज को समझाना होगा। समाज को अपनी विरासत को
सहेजने के काम में लगाना होगा। फिर संगठन बनाकर, तैयार करके विरासत को
बचाने में जुटना होगा, यदि फिर भी विरासत न बचे तो फिर विरासत बिगाड़ने
वालों के खिलाफ संघर्ष करना होगा। इसके बाद जयेश
जोशी ने कहा कि, आज जो बागड़ की विरासत पर संकट है, इस संकट से विरासत को
बचाने के लिए संकल्प बद्ध है। इस विरासत स्वराज यात्रा में महात्मा गांधी
के विचार के बीज को , बालकों को, शिक्षको को, आमजन सभी को अपनी विरासत से
सीखकर, समझकर, गांव-गांव में जाकर अपने समाज को समझाने का काम करेंगें।
जलपुरुष
राजेन्द्र सिंह ने कहा कि, आज दुनिया में जो विरासत का संकट है, इस विरासत
के संकट से मुक्ति के लिए दुनिया भर के लोग तैयार है। हमें अपने गांव,
अपने राज्य, अपने देश के लोगों को विरासत के महत्व को समझाकर विरासत बचाने
का अहसास और आभास करायेंगे कि, यदि हमारी विरासत बचेगी तो हमारा जीवन,
जीविका, जमीर बचेगा, जो हमारी विरासत में निहित है। तो हम बापू के जन्मदिन
पर उनकी संकल्पना को साकार कर सकेंगे। इस अवसर पर हमारे बागड़ समाज की
विरासत अपने ज्ञानतंत्र को बचाने के लिए जुटना होगा। हम इस यात्रा को
दुनिया के स्तर पर करेंगे। हम उन सभी को जो गांधी के अनुरूप काम करने वाले
जिन देशों में लोग मौजूद है, जहां - जहां मानवता और प्रकृति के प्रति
प्रेम करने वाले व विरासत को सम्मान करने वाले लोग है, उन सभी को जोड़ने के
लिए संकल्पित है। हम मानवता और प्रकृति का बराबर से सम्मान करने के लिए
हमारी विरासत में जो महानता है, उस महानता से समाज को रुबरू करा के आगे
बढ़ायेंगे।
विरासत स्वराज
यात्रा : जनजातीय समाज में जल स्वराज, मिट्टी स्वराज, बीज स्वराज, वन स्वराज,
खाद्य एवं पोषण स्वराज, वैचारिक स्वराज को स्थापित करना है, जिस ग्राम
स्वराज के रास्ते गांधी हिन्द स्वराज का सपना साकार होते देखना चाहते थे
उससे हमारे गांव कोसों दूर होते जा रहे भारत के केन्द्र में स्थित जनजातीय
क्षेत्र में समुदाय के साथ कार्यरत वाग्धारा संस्था स्वराज की ओर बढ़ रही
है, जो क्षेत्र में जनजातीय समाज की संप्रुभूता और टिकाऊ आजीविका के लिए
समर्पित है, इसी के आगे वाग्धारा ने विरासत स्वराज यात्रा का शुभारंभ 2
अक्टूबर गांधी जी की जयंती के दिन किया विरासत स्वराज यात्रा वाग्घरा परिसर
कुपड़ा से राजस्थान के डूंगरपुर जिले के साबला, आसपुर, से बांसवाड़ा जिले
के घाटोल, से होते हुए पीपलखूंट, से मध्प्रदेश में बाजना, कुशलगढ़, थांदला,
सज्जनगढ़, से गागाड़तलाई, गुजरात राज्य में झालोद, फतेहपुरा से
आनंदपुरी
के गमाना गांव में गुरु गोविंद सिंह बारादरी भवन में आयोजन रहा स्वराज
जिसका संचालन प्रभुलाल गरासिया ने किया, प्रभुलाल जी ने जनजातीय स्वराज
संगठन के पदाधिकारी व समाज के लोगों को स्वराज के उद्देश्यों से अवगत
कराया, इसी के साथ प्रहलाद सिंह ने स्थानीय जनजातीय लोगों का विरासत स्वराज
यात्रा में स्वागत किया और परम्परागत तरीके से खेती करने पर अपनी बात कही
और खेती में निहित स्वराज की परिकल्पना से अवगत कराया, इसके के आगे
कार्यक्रम में माजिद खान ने बताया कि हमारे गांव बाजार पर निर्भर होते जा
रहे है।
हम स्वराज की परिकल्पना से दूर होते जाते रहे है हमे हमारे घर पर
सभी को थोड़ी सी भूमि पर साग सब्जी की बगिया लगानी आवश्यक है जिससे हमे
ताजी और स्वच्छ सब्जी मिले ताकि हमारे बच्चे कुपोषित नहीं रहे, सभी बच्चे
स्वस्थ रहे, और हम किसी भी तरह बाजार पर निर्भर नहीं रहे, इसके साथ मानसिंह
निनामा ने कहा कि अगर हम अपने खेत पर दाल खुद उगाकर नहीं खाते है तो वह
स्वराज नहीं है, अगर हम दूध के लिए बाजार पर निर्भर है तो वह हमारा स्वराज
नहीं है, हमे अगर स्वराज की परिकल्पना को साकार करना है, तो हम खुद
आत्मनिर्भर कैसे बने इसके लिए सोचना होगा, दिनेश पटेल ने जनजातीय समुदाय को
मजबूती के साथ स्वराज को अपनाने के लिए अपनी बात कही, पी एल पटेल ने बताया
कि जो हमारी विरासत है, उसे हम क्यों भुल रहे है, हमें जो हमारे बाप दादा
ने भूमि दी है, उसे हमे रासायनिक दवाई, यूरिया जैसे खतरनाक पदार्थ डालकर
क्यों हम अपनी धरती माता को जहर दे रहे है।
हमे अब यह अपनी भूमि को इस जहर
से बचाना है, और परम्परागत तरीके से जैविक खेती को पूरे मन से अपनाना है,
इसके के साथ कार्यक्रम में वाग्धारा संस्था के सचिव महोदय जयेश जोशी जी ने
अपने विचारों में जनजातीय समाज को एक सकारात्मक ऊर्जा दी है जिसने उन्होंने
बताया कि विरासत वही है जो हमे हमारे दादा परदादा ने दी है उसे हम क्यों
नहीं सहज पा रहे है, हमें जो प्रकृति ने उपहार दिया उसे हम क्यूं नष्ट कर
रहे है, हमें स्वराज के गांव का निर्माण करना है, जिसमें हमारी आदिवासी
संस्कृति, विचार जो हमारी विरासत है उसे आपको सहेजना है, हमे परम्परागत
तरीके से खेती करनी है, हमारे बीज को सहेजना है, तभी वह हमारा स्वराज होगा,
बीज स्वराज की परिकल्पना को साकार करने के लिए जनजातीय समाज को मर्गदशित
किया।
कार्यक्रम के अंत में धरती माता की आरती की गई और भूमि पूजन किया कार्यक्रम में आए सभी सदस्यों को विकास मेश्राम ने आभार व्यक्त किया।और स्वराज यात्रा का समापन दिनांक 20/10/2021 को मानगढ धाम में हुआ। जनजातीय स्वराज संगठन के पदाधिकारी, मंजुला देवी, हीरा लाल, मोहन लाल,
मक्सी भाई, धनपाल आयाड़, प्रभुलाल, कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए
वाग्धारा संस्थान से विकास मेश्राम, गोपाल सुथार, बाबूलाल, वीरेंद्र,
दीपिका, कांता, कैलाश, सुरेश, भूरालाल, ललिता, उषा, उपस्थित रहे
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