छोटे- छोटे बच्चों के सर्वांगीण विकास के लिए जरूरी है कि उनकी आदतों की जानकारी उन्हें दी जाए। कविता के माध्यम से बच्चे दिनचर्या को अपनी जुबान पर रख सकेंगे। प्रस्तुत बालकविता युवा कवि व शिक्षक अमरेंद्र कुमार की सुहृदयता का परिचायक है -
मैं हूं परी...
मैं हूं परी...
मैं, चिड़िया बनके उड़ती हूं..
फुदकती हूं, चहकती हूं...
मैं परी हूं...
जब सबेरा होता है,
आंख भींचते उठती हूं,
शौच, ब्रश करके ही मैं,
नाश्ता लेने बैठती हूं,
मैं परी हूं।
टहलती हूं मैं, दौड़ती हूं मैं,
सरपट सरपट चलती हूं मैं,
सहपाठी संग पगडंडियों से,
रोज विद्यालय करती हूं,
मैं परी हूं।
झांकती भी हूं मैं, निहारती हूं मैं
किताबों से भी पढ़ती हूं मैं,
कॉपी की सुंदर पन्नों पर मैं,
उलट पुलट कर लिखती हूं,
मैं परी हूं।
सुनती हूं मैं, सुनाती हूं मैं,
सुर मिलाकर गाती हूं मैं,
झटपट झटपट अपने काम
चुटकियों में निबटाती हूं,
मैं परी हूं...
टन टन टन जब बजती घंटी,
छुट्टी मन को भाता है,
हाथ थामे सहपाठियों संग,
अपने घर को लौटती हूं,
मैं परी हूं।
खेलती हूं मैं, घूमती हूं मैं,
दादी से कहानी सुनती हूं मैं,
गृहकार्य कर रोज रात में,
मां के आंचल में सोती हूं,
मैं परी हूं।
2 टिप्पणियाँ
बहुत सुंदर रचना...👌👌
जवाब देंहटाएंVery good poem
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