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मेरी सुरक्षा किसके हाथ? पूछती है भारत की बेटियां

निकहत परवीन

पूर्वी चंपारण, बिहार

भारत जैसे धर्मनिरपेक्ष देश में कई धर्म की उपस्थिति होने के कारण स्त्रियों को कई रुपों में सम्मानित किया गया है। कभी देवी, दूर्गा, जगतजननी, अर्धांगनी, तो कभी सीता और मरियम के रुप में सुशोभित सम्मानित किया गया है। हां, सम्मान दिया तो गया है लेकिन अतीत से लेकर वर्तमान तक समय-समय पर कुछ निरंकुश कुत्सित मानसिकता के पुरुषों द्वारा अपमानित भी किया गया है।
इस बार सात सिंतबर को इस अपमान की शिकार बनी है दक्षिण दिल्ली की एक 90 वर्षीय महिला, शायद महिला की जगह बुजुर्ग कहना अधिक उचित होगा क्योंकि इस उम्र में आने के बाद समाज में उपस्थित अपने आसपास के पुरुष या महिला को बुजुर्ग का दर्जा अपने आप ही मिल जाता है और सम्मान भी मिलने लगता है। अफसोस की बात है कि दिल्ली की 90 वर्षीय इस महिला को उसके ही जानने वाले व्यक्ति ने अपनी दादी जैसी महिला को वो सम्मान नही दिया जिस सम्मान पर उसका पूर्ण अधिकार था। और उसके शरीर के साथ ही नही बल्कि महिला की अंतर आत्मा के साथ लगभग दो घंटे तक दुष्कर्म जैसा घिनौना कृत्य करके जो नीचता दिखाई है, वो अंतिम समय तक महिला कभी भूल ही नही सकती। एक अखबार से बातचीत के अंश में महिला, दूसरी महिला पत्रकार को बताती है कि इतने लंबे जीवन काल में वो कभी बीमार नहीं पड़ी थी, कभी बुखार या सिरदर्द जैसी छोटी-मोटी पीड़ा से भी वो कभी नहीं गुजरी और एक स्वस्थ जीवन व्यतीत करती आई है। लेकिन उम्र के इस आखिरी पड़ाव में जो उसने झेला वो सच में आत्मा को झकझोर देने वाला है। महिला आगे बताती है कि वो घर के बाहर पास वाले मंदिर के समीप बैठी थी तभी वो व्यक्ति आया और बहाने से महिला को बाइक पर बिठाकर जंगल की तरफ बने एक खंडर जैसे कमरे में ले जाने लगा। महिला के पूछने पर उसने बोला कि वहां वो पैसे लेने जा रहा है जो कमरे में पड़े हैं। जब महिला बाइक से जबरन उतरने की कोशिश करने लगी तब महिला को पहले उसने कांटों भरे रास्ते से घसीटना शुरु कर दिया और उसके बाद कमरे में जाकर बूढ़ी महिला के साथ दो घंटे तक दुष्कर्म किया। महिला मदद की गुहार लगाती रही, समझाने का पूरा प्रयास करती रही कि मैं तुम्हारी दादी की तरह हूं, लेकिन उस हैवान ने महिला की हर विनती को रद्द करते हुए सिर्फ अपनी हवस मिटाई। अंत में महिला ने बड़ी हिम्मत जुटाकर, जोर से चीख मारी तो आसपास से गुजरने वाले एक शख्स ने उसकी मदद की और उस हैवान को पुलिस के हवाले किया। मदद करने वाले उस व्यक्ति के अनुसार वो हैवान पूरी तरह नशे में धूत था। शायद उसने ज्यादा ही शराब पी थी या ड्रग्स लिया था। कुछ कह नहीं सकते बस इतना कि वो पूरी तरह नशे में था।

(picassoart)
परंतु अफसोस की भारत जैसे महान देश में महिलाओं से दुष्कर्म का सिलसिला रुकने का नाम ही नहीं ले रहा पिछले कुछ माह में दिल्ली से लेकर यूपी के हाथरस और बलरामपुर और प्रतिदिन किसी किसी स्थान से आने वाली रेप की खबरें चैंकाने वाली है। जिसने सिर्फ मानवता की हदों को पार किया है बल्कि देश दुनिया में हमें और हमारी न्याय व्यवस्था को भी शर्मशार किया है। कवि की यह उक्ति वर्तमान समय में आज भी प्रासंगिक है-

‘‘औरत ने जनम दिया मर्दों को, मर्दों ने उसे बाजार दिया
जब जी चाहा कुचला-मसला, जब जी चाहा दुत्कार दिया’’

इन सभी घटनाओं के होने के बाद देश के जिम्मेदार लोगों का गैर-इंसानी रवैया इस बात का सबूत है कि आधी आबादी का दर्जा रखने वाली महिला वास्तव में अपने ही देश में पराई हो चुकी है। ठीक उसी तरह जैसे शादी के बाद बेटियों को पराया समझा जाने लगता है। शायद इसी कारणवश सबूत होने के बाद भी कभी रेप पीड़िता को स्वयं शासन व्यवस्था चरित्रहीन घोषित कर देती है, तो कभी चार दिन बाद ये कहती है कि पीड़िता के साथ रेप हुआ ही नहीं। ताकत और धन से परिपूर्ण महिला को वाई और जेड की सुरक्षा प्रदान करती है, लेकिन आम जीवन जीने वाली लड़कियों के लिए दोषियों को पूरी तरह दोषी मानने से भी इंकार करती है। ऐसी स्थिति में लोगों का न्यायिक व्यवस्था से विष्वास उठ जाएगा। देश में इस तरह की घटना आम बात हो जाएगी। बाकायदे एक स्त्री के आत्मसम्मान की कीमत उसके मरने के बाद घर वालों को 25 लाख रुपए और सरकारी नौकरी देकर अदा कर दी जाएगी। विरोध करने वालों के कपड़े फाड़े जाएंगे और, उन्हे ही जेल होगी जी हां , पिछले कुछ महिनों से जिस तरह का वातावरण रेप के मामले में बन रहा है या बनाया जा रहा है उससे साफ प्रतीत होता है कि हम बेटियों को सुरक्षा प्रदान करने के लिए किसी योजना से ज्यादा भरोसा अगर घरों में बेटों को दिए जाने वाले संस्कारों पर और स्वंय पर करें  तो आशा है कि काफी हद तक सफल भी हों पाएं। लेकिन कैसे?
इसी प्रश्न का उत्तर जानने के लिए हमें ये समझना होगा कि आखिर वो कौन से ऐसे कारण हैं जिसके बाद दुनिया की सबसे सुंदर और सर्वश्रेष्ठ रचना मानव ही दूसरे मानव के लिए दानव का रुप धारण कर लेता है। इस प्रश्न का सबसे पहला उत्तर है- घर के आंगन में बचपन से ही मां बाप या घर के अन्य बड़ों द्वारा बेटा और बेटी की परवरिश अलग सोंच के साथ करना जिसमें बेटे को बेटे के रुप में एक भाई के रुप में इस बात का अहसास दिलाना की उसका दर्जा घर में बेटी से ज्यादा हैं, उसकी छोटी या बड़ी बहन से ज्यादा है चूंकि वो बेटा है किसी का भाई है, तो मात्र इस कारण से उसे अधिकार प्राप्त है कि वो अपनी बहन पर चिल्ला सकता है, चीख सकता है। उसके हिस्से का खाना छिन कर खा सकता है। आवश्यकता पड़ने और मूड बनने पर उसे घर की कोई भी चीज फेंक कर मारने का भी जन्म सिद्ध अधिकार प्राप्त है, बिना इस बात की चिंता किए हुए की मारने के कारण चोट कहां और कितनी गहरी लगेगी।
एक महान पति का अपने बेटे का सामने कभी भी और किसा भी स्थिति में छोटी-मोटी होने वाली गलतियों के लिए अपनी पत्नी और उसकी मां को बड़े शान से मारना। ताकि बेटे को बचपन से ही ये सीख मिल सके की गलती करने पर नारी को माफ करने जैसा महान काम नहीं करते बल्कि उसे सजा देने के बाद ही एक पुरुष महान बनता है। एक बालक के रुप में लड़का जो बचपन में अपनी मां के साथ होता देखता है वही विवाह जैसे पवित्र बंधन में बंधने के बाद भी अपनी पत्नी के साथ करता है और जीवनभर उसे ये आभास ही नहीं होता कि वो कुछ गलत कर रहा है।
स्कूलों में जाने के बाद नैतिक शिक्षा के नाम पर शिक्षकों द्वारा कभी इस बात की चर्चा बढ़ते उम्र के बच्चों के साथ करना कि जीवन में शुरु से लेकर अंत तक स्त्री का महत्व क्या है और क्यों है और बिना स्त्री संसार की क्या स्थिति हो जाएगी।
निश्चित ही ऐसे परिवेश में पलने वाले बच्चे कभी नही समझ पांएंगे कि नारी क्या है, क्यों हैं और नारी सम्मान की हकदार क्यों है? ऐसी स्थिति में कोई भी बच्चा स्कूल हो या कालेज या काम करने की जगह हर परिवेश में नारी को सिर्फ और सिर्फ मनोंरंजन का एक साधन मात्र ही समझेगा। इस सोंच में चार चांद लगाने का काम करती है हमारी फिल्मी दुनिया और फिल्मी दुनिया में बनने वाली कहानियां जिनमें नग्नता से भरे कई सीन और गाने हिरोईन पर दर्शाए जाते हैं जिसे देखने के बाद उम्र छोटी हो या बड़ी पुरुष के रुप में एक बच्चे का स्त्री देह को नजदीक से देखने की लालसा बढ़ती चली जाती है जो कई बार रेप पर जाकर समाप्त होती है। किसी कवि ने ठीक ही कहा है-

‘‘ मर्दों के लिए हर जुल्म रवाँ, औरत के लिए रोना भी खता
मर्दों के लिये लाखों सेजें, औरत के लिए बस एक चिता
मर्दों के लिऐ हर ऐश का हक, औरत के लिए जीना भी सजा’’

अब समय गया है कि हम इन तमाम बिंदुओं पर गहराई से मंथन करें और नतीजे पर पहुंचने के बाद बच्चों को एक साकारात्मक परिवेश देने की शुरुआत आज से और अभी से करें। साथ ही हमें इस ओर भी ध्यान देना होगा कि बचपन से ही अपनी बेटियों को रोटी बनाना भले ही सीखा पाएं लेकिन आत्मसम्मान की रक्षा कैसे करनी है इसकी शिक्षा देनी होगी। पास पड़ोस में रहने वाले लूच्चे लंफगे लड़को द्वारा छेड़े जाने पर मुंह छुपा कर घर के किसी कोने में रोने की शिक्षा नहीं बल्कि उसी समय जोर जोर से चीख कर पूरे मुहल्ले को इक्ट्ठा करके कैसे उस लड़के को सबक सीखाना है, इसका प्रशिक्षण देना होगा।नाका मतलब सिर्फ और सिर्फनाही होता है उसे गलती से भीहां समझा जाए। पूरे विश्वास के साथ एक बेटी खुले आसमान के नीचे बोल सकेनामतलबनाये विश्वास बेटियों में जगाना होगा। और भी ऐसे कई काम हैं जो हमें करने होगें अपनी बेटियों की, बहनों की और औरत के हर रुप की सुरक्षा और आत्मसम्मान को बचाने के लिए शायद तब कहीं जाकर हम वो दिन देख पाएं जब देश में औरतों के आत्मनिर्भर बनने के आंकड़े में वृद्धि होगी और रेप के आंकड़े शून्य हो जाएंगे। (आलेख चरखा फीचर सर्विस की पूर्व हिन्दी संपादक का है।)



 

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