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बच्चे को समाज के लिए कैसे शिक्षित करें?

Amritanj Indiwar

चिकित्सक के मुताबिक बच्चों में मोबाइल के अधिक प्रयोग से डिप्रेशन, अनिद्रा, चिड़चिड़ापन, सिरदर्द, आंख की रोशनी कम होना, दर्द होना, गर्दन में दर्द होना, ह्रदय रोग होना कई मानसिक रोगों के साथ-साथ मोबाइल के रेडिएशन से मानसिक विकृति पैदा कर रही है। वहीं पब्जी जैसे और क्राइम से संबंधित गेम की वजह से बच्चे भी अपराधी हो रहे हैं। 

शिक्षा समाज निर्माण करने का सशक्त माध्यम है। जैसी शिक्षा वैसा समाज, वैसा राज्य और वैसा राष्ट्र। शिक्षा समाज को शिक्षित ही नहीं बल्कि नैतिक, सामाजिक, आर्थिक समस्या से निपटने की व्यवस्था की समझ भी पैदा करती है। किसी भी राष्ट्र का विकास वहां के शिक्षा के स्तर से आंका जा सकता है। किसी भी मुल्क की शैक्षिक स्तर को जानना हो, तो वहां के शिक्षक से मिले। उनसे बातें करें, उनके व्यवहार, रहन-सहन, मानसिकता, बौद्धिकता की परख करें। निःसंदेह आपको उस राष्ट्र के नौनिहालों (बच्चे) की शैक्षिक स्थिति का पूरा निचोड़ मिल जाएगा। 

'समाज संस्था' हो रही कमजोर:  

सनद रहे कि पूरे भारत में दो दशक पहले की शिक्षा व्यवस्था भले ही इतना आइटी फ्रेंडली नहीं थी। गूगल बाबा जैसे सर्च इंजन से अधिकांश लोग अनभिज्ञ थे। पर, पुस्तकालय, वचनालय, सांस्कृतिक कार्यक्रमों की मजबूत श्रृंखला चल रही थी। जिसे बच्चे ही नहीं बुजुर्ग भी नैतिक, सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, वैज्ञानिक, आध्यात्मिक और सूचना संचार की बेहतर समझ के लिए प्रयासरत थे। आज के बच्चे से लेकर माता-पिता तक मोबाइल से चिपके रहते हैं। सोशल साइट्स , स्कूल, काॅलेज तथा गुरुजी की भूमिका में है- वाह्टसाॅप, फेसबुक, इंस्टाग्राम आदि से लोग चिपके रहते हैं। विडियो, इमेज, लेख-कहानी की लंबी फेहरिस्त रहती है।

बच्चों की शिक्षा के लिए आइटी टूल्स का करें सही इस्तेमाल:  

अक्सर देखा जाता है कि कामकाजी महिलाएं बच्चों से दूर होती जा रही हैं। नौकरी, व्यवसाय व सेवाकार्य में तल्लीनता की वजह से बच्चों का मानसिक और शारीरिक पोषण प्रभावित हो रहा है। आया, मेट, नौकरों-चाकरों के भरोसे लालन-पालन की जिम्मेवारी है। जिसकी वजह से बच्चों को पारिवारिक व सामाजिक प्रेम व संस्कार नहीं मिल पाता। सुबह से लेकर शाम तक सयाने की तरह भारी बस्ते को लेकर विद्यालय, कोचिंग, ट्यूशन का चक्कर लगाने में पूरा वक्त गुजर रहा है। दूसरी ओर कामकाती माताएं घर लौटते ही थक चुकी होती है। 

आराम की जरूरत पड़ती है। पर बालमन इन चीजों से अनजान रहता है। इनका बालपन मां के करीब ले जाता है और मां प्यार के बजाए फटकारने लगती है। और उन्हें मोबाइल पर गेम, म्यूजिक, कार्टून आदि देखने की छूट दे देती है। यहीं से शुरू होता है बच्चों के असामाजिक बनने की प्रक्रिया। पहले अभिभावकों का मानना था कि पड़ोसी के बच्चे की वजह से हमारे बच्चे बिगड़ रहे हैं। पर समय के साथ यह धारणा बिल्कुल विपरीत होती जा रही है। अब बच्चे बिगड़ रहे हैं मोबाइल और टेैबलेट से। जब बड़े मोबाइल पर ऊंगुलियां घुमाएंगे, तो देखदेखी बच्चे भी ऊंगुलियां गेम व अश्लील  विडियो पर घुमाएंगे।  ऐसे बच्चे धीरे-धीरे परिवार और पड़ोसी से कटने लगते हैं। उनकी मानसिक स्थिति अस्थिर होती जाती है।

बचपन की गलत आदतों से बच्चे बन रहे है असामाजिक:  

कोविड के बाद ऑनलाइन क्लास के दौरान बच्चों को खुली छूट मिलने की वजह से बच्चों में गेम खेलना, सोशल मीडिया का गलत प्रयोग करना, आपतिजनक विडियो देखना आदि के कारण कम आयु में ही गलत आदतें बनती जा रही है। परिणामतः बच्चे परिवार और समाज से अनौपचारिक शिक्षा नहीं ले पा रहे। बड़े-बुजुर्गों का सानिध्य छूटता जा रहा है और बच्चे असामाजिक बनते जा रहे हैं। 

चिकित्सक के मुताबिक बच्चों में मोबाइल के अधिक प्रयोग से बच्चों में डिप्रेशन, अनिद्रा, चिड़चिड़ापन, सिरदर्द, आंख की रोशनी कम होना, दर्द होना, गर्दन में दर्द होना, ह्रदय रोग होना कई मानसिक रोगों के साथ-साथ मोबाइल के रेडिएशन से मानसिक विकृति की समस्या बढ़ रही है। वहीं पब्जी जैसे और क्राइम से संबंधित गेम की वजह से बच्चे भी अपराधी हो रहे हैं। 

बच्चे सामाजिक कैसे बनेंगे: 

बच्चों को समाज के लिए शिक्षित करने हेतु माता-पिता को पूरी सावधानी के साथ बच्चों के साथ घर और बाहर में खेलकूद, स्विमिंग, योगा, पुस्तकालय आदि की सैर कराए । मोबाइल पर ज्ञानवर्द्धक चैनलों से परिचित कराए। उनके अंदर की जिज्ञासा को जागृत करें, साथ में भोजन करें, पर्यटन स्थल का भ्रमण करें, महापुरुषों की जीवनी सुनाएं, वाद्य यंत्रों को बजाना सीखलाए, नृत्यकला, चित्रकला, लेखनकला आदि से अवगत कराएं। सप्ताह में कुछ चर्चित लोगों से मिलाएं जो सामाजिक सोंच के हो। कवि सम्मेलन, जादू शो, सांस्कृतिक कार्यक्रमों एवं महोत्सव में ले जाएं। उनके अंदर भविष्य के सपने सजाएं। निश्चित  रूप से बच्चों का मानसिक विकास होगा और सामाजिक और नैतिक सोंच बनेगी। 

ऐसे करें बच्चों को नैतिक रूप से सक्त: 

बच्चों को यूट्यूब पर ब्रांडेड और प्रतिष्ठित चैनलों से जोड़े। उन्हें विज्ञान, समाज, साहित्य, सामाजिक विज्ञान, मोरल विडियो स्टोरी- पंचतंत्र की कहानियां, हितोपदेश, ऑनलाइन बाल  पत्रिका व विज्ञान पत्रिका आदि पढ़ने की आदत डालें। मन में उठ रहे सभी प्रश्नों को चैनल से ही नहीं बल्कि घर में छोटी सी लाइब्रेरी बनाने की भी आदत डालें ताकि बच्चे किताबों को सहजते हुए खुद अध्ययन भी करेंगे और आसपास के बच्चों के लिए प्रेरणा भी बनेंगे।ऑनलाइन  आलिंपियाड, भाषण प्रतियोगिता, लेखन प्रतियोगिता, चित्रकारी आदि से बच्चों के अंदर विषय की समझ के साथ-साथ रचनात्मकता, कलात्मकता और नवीन सृजनशीलता का कौशल विकसित करता है। 

वस्तुतः बच्चों के सामाजिक बनाएं रखने के लिए केवल स्कूल ही नहीं बल्कि माता-पिता का व्यवहार, रहन-सहन, आचार-विचार, कार्यकुशलता, पेशा , कार्यक्षेत्र, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक विचार, स्वभाव, व्यवहार आदि बच्चों के लिए अमृत होते हैं। अधुनिकता के इस प्रवाह से इतर सभी अभिभावकों को बच्चों के बालमन, बाल सुलभ क्रिया, बाल मनोविज्ञान को पूरी गहराई से समझना होगा। उनके साथ मित्रवत और मार्गदर्शक  की भूमिका  प्रेमिल वातावरण के साथ निभाना होगा। तभी देश के भविष्य सच्चे अर्थों में राष्ट्र के निर्माण में महती भूमिका निभाएंगे। सरकारी स्तर पर भी प्रयास बहुत जरूरी है। स्कूल और समाज में सही तालमेल होना आवश्यक है। समाज के पढे़-लिखे लोगों को भी सामाजिक स्तर पर बच्चों के लिए कार्यक्रम आयोजित करना होगा तभी नौनिहालों की जिंदगी 'वसुधव कुटुंबकम' की उक्ति को फलीभूत करेगा और सपनों का राष्ट्र बनाने में मील का पत्थर साबित होगा। 


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