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बाल मन की उड़ान : उत्तराखंड की बाल एवं किशोर कविताएँ

🌸 बाल एवं किशोर कविताएँ 🌸

बाल मन की उड़ान : उत्तराखंड की बाल एवं किशोर कविताएँ

पंख लगा दो मेरे

कुमारी महेश्वरी
लमचूला, गरुड़
बागेश्वर, उत्तराखंड


पंख लगा दो मेरे मैं भी उड़ जाऊंगी,
कभी सूरज तो कभी चाँद तक पहुँच जाऊंगी,
पंख लगा दो मेरे मैं पंछी बन जाऊंगी,
चहचहाते हुए फिर सबका मन बहलाऊंगी,
मैं बगिया में जाकर फूलों पर मंडराऊँगी,
घर-आँगन को खुशियों से भर जाऊंगी,
लगा दो पंख मेरे मैं भी उड़ जाऊंगी॥

मैं होती तितली अगर

चाँदनी
कपकोट, उत्तराखंड


काश मैं होती तितली अगर,
जहाँ मन चाहा उड़ जाती,
जो मन चाहता वो कर पाती,
हर फूल पर बैठकर,
उससे बातें मैं कर पाती,
तितली के रंग मुझे हैं भाते,
ना जाने इतने रंग कहाँ से आते,
मेरी पहचान भी एक रंग से होती,
मेरी दुनिया भी रंग-बिरंगी होती,
काश मैं अगर तितली होती।

जानते हैं हम अपनी ज़िंदगी को

बबीता (उम्र – 11 वर्ष)
सैलानी, गरुड़
बागेश्वर, उत्तराखंड


जानते हैं हम अपनी ज़िंदगी को,
क्या बदल सकते हैं हम,
सीखेंगे हम सब कुछ,
बनकर दिखाएंगे बहुत कुछ,
मत डालो हम पर ज़्यादा दबाव,
नहीं तो हम हो जाएंगे परेशान,
दिमाग से निकाल दो उन लोगों को,
जिन्होंने उठाई हैं उँगलियाँ आप पर,
वो तो हमेशा बोलते रहेंगे,
और हम अपना काम करते रहेंगे,
क्योंकि हम जानते हैं अपनी ज़िंदगी को॥

जीवन के रंग

श्रुति जोशी
बैसानी, उत्तराखंड


खुद को न माना किसी से कम,
दुनिया के एक कोने में हैं हम,
न डर है न कोई शर्म,
लिखना तो मैं बहुत कुछ चाहूँ,
पर लिख न पाऊँ मैं सच,
अरे फिक्र भी तो है सबकी,
चाहे छोड़ना पड़ जाए दम,
दुनिया से अनजान रहकर भी,
जुड़े हैं उन मधुर गीतों के संग,
उसे मैं चहचहाना कहूँ,
या कहूँ कुछ और,
या चलती रहूँ उन हवाओं के संग,
जिसने पकड़ा है हर छोर एक रंग,
लिखती हूँ उस जल की धारा में,
जो है निर्मल और सब रंग।

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