हरीश कुमार
पुंछ, जम्मू
कम आय वाले कई ऐसे परिवार हैं जहां एंड्रॉएड फोन की कमी की वजह से
बच्चे ऑनलाइन क्लॉस करने से वंचित रह गए और पूरे लॉक डाउन के दौरान उनकी पढ़ाई छूट गई। आर्थिक स्थिति कमज़ोर होने के बावजूद शिक्षा के
महत्त्व को प्राथमिकता देते हुए कुछ अभिभावकों ने ऐसे फोन उपलब्ध भी कराये तो
परिवार के किसी एक बच्चे को ही यह सुविधा मिल पाती थी। अन्य राज्यों की अपेक्षा
केंद्रशासित प्रदेश जम्मू कश्मीर के बच्चों को इस दौरान दोहरी कठिनाइयों का सामना
करना पड़ा है। एक तरफ जहां लॉक डाउन से स्कूल बंद थे तो वहीं धारा 370 के हटने के बाद पूरे राज्य में केवल 2G के संचालन ने
मोबाइल नेटवर्क की रफ़्तार पर भी ब्रेक लगा रखा था। परिणामस्वरूप ग्रामीण क्षेत्रों
की बात तो दूर, अच्छी आर्थिक स्थिती वाले परिवारों और शहरी
क्षेत्रों के बच्चों को भी ऑनलाइन क्लॉस करने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ा था। करोना महामारी के चलते पूरे 11 महीनो स्कूलों मे
ताले देखने को मिले। बच्चों की पढ़ाई अस्त व्यस्त हो गई। उन्होने जो कुछ स्कूलों मे
सीखा था वह भी भूल बैठे थे। अब जबकि धीरे धीरे स्कूल खुलने शुरू हुए तो अभिभावकों
के साथ साथ बच्चों में भी एक नई ख़ुशी और उमंग देखने को मिल रही है।
जम्मू के सीमावर्ती क्षेत्र पुंछ से करीब 6 किमी
दूर मंगनाड गांव के अभिभावकों के साथ साथ बच्चे भी दुबारा स्कूल खुलने से खुश हैं, उन्हें उम्मीद है कि पटरी
से उतर चुकी उनकी पढ़ाई स्कूल खुलने से फिर रफ़्तार पकड़ सकेगी। गांव के वार्ड नंबर 1
के मोहल्ला टेंपल के रहने वाले दर्शन लाल पेशे से मज़दूर है। परिवार
में तीन बच्चों में बड़ा बेटा सुनील 11th का विद्यार्थी है। स्मार्टफोन नहीं होने के कारण वह पिछले 11 महीने से अपनी पढ़ाई नहीं कर पा रहा था। दर्शन लाल कहते हैं कि जब करोना
काल का बुरा समय था, तब सरकार ने हमारे लिए बहुत महत्वपूर्ण
कदम उठाए। सरकार ने हर तरफ से हमारी मदद की। हमें मुफ्त राशन, गैस, दाल और हमारे खाते में जनधन योजना के तहत पैसे
भी डालें। लेकिन बच्चों की पढ़ाई छूट गई। गरीबी के कारण बच्चों को ऐसे फोन उपलब्ध
नहीं करा पाया जिससे वह अपनी शिक्षा को जारी रख सकते। परन्तु अब जबकि स्कूल खुलने लगे
हैं तो हमारी सरकार से यही विनती है कि कुछ खास सावधानियों को ध्यान रखते हुए इस
वर्ष बच्चों की शिक्षा पर अधिक से अधिक ध्यान केंद्रित करे। हालांकि इसी मोहल्ले
में रहने वाली पिंकी देवी का कहना था कि उनका बेटा सातवीं का छात्र है। उन्होंने
किसी तरह अपने बच्चे के लिए स्मार्ट फोन उपलब्ध करा लिया था, लेकिन ऑनलाइन स्टडी के दौरान उसे कुछ भी समझ नहीं आ रहा था। पिछले 11
महीनों में उसने एक दिन भी ढंग से पढ़ाई नहीं की। उनका कहना था कि हम
इतने पढ़े लिखे नहीं हैं कि उसे स्वयं पढ़ा सकें। अब
जबकि स्कूल खुल गए हैं तो उम्मीद है कि शिक्षक उसकी पढ़ाई पूरी करवाने में उसकी मदद
करेंगे।
इसी गांव के वार्ड नंबर 2 स्थित मोहल्ला 'ग्रा' के रहने वाले देवेंद्र पाल का बड़ा बेटा अंकित
सातवीं कक्षा में और छोटा बेटा मनीष चौथी कक्षा का छात्र है। वह अपने बच्चों के
भविष्य के प्रति चिंतित दिखे। इनके पास भी स्मार्ट फोन नहीं था। जिससे लॉक डाउन के
दौरान इनके बच्चे ऑनलाइन स्टडी से वंचित रह गए। परंतु अब जबकि स्कूल खुल गए हैं तो
इन्हें भी उम्मीद है कि बच्चों की अधूरी रह गई पढ़ाई समय पर पूरी हो सकेगी। वहीं
मोहल्ला 'लोपारा' के रहने वाले प्रदीप
का मानना है कि स्कूल में पढ़ाई के साथ-साथ अनुशासन भी सिखाई जाती है। ऐसे में
स्कूल बंद होने से बच्चे जहां पढ़ाई में कमजोर हो रहे थे, वहीं
उनका अनुशासन भी भंग हो रहा था। अब जब स्कूल खुल गए हैं तो बच्चों की पढ़ाई और
अनुशासन दोनों में सुधार आ सकता है।
इस सिलसिले में क्षेत्र के मुख्य शिक्षा अधिकारी चौधरी गुलजार हुसैन
का भी मानना है कि कमज़ोर नेटवर्किंग के कारण बच्चों को ऑनलाइन क्लास करने में
कठिनाइयों का सामना करना पड़ा था। उनका कहना है कि पिछले एक साल से भी ज्यादा समय
से इस केंद्रशासित प्रदेश में 4G इंटरनेट सेवा बाधित रही है,
जिसके कारण दूरदराज इलाकों में नेटवर्क की हालत बहुत खराब रही है।
हालांकि अब 4G नेटवर्क सेवा बहाल हो गई है तो स्कूल भी खुलने
लगे हैं, ऐसे में बच्चों की पढ़ाई फिर से रफ़्तार पकड़ सकेगी।
हालांकि उनका मानना है कि ऑनलाइन क्लासेस से बेहतर
कम्युनिटी क्लासेस रही है। चौधरी गुलज़ार ने कहा कि
कोरोना के सभी नियमों का पूरी तरह से पालन करते हुए चरणबद्ध तरीके से कक्षाएं
संचालित की जा रही हैं। उन्होंने इस तर्क से सहमति जताते हुए कहा कि कोरोना काल
में हमारी शिक्षा व्यवस्था बहुत कमज़ोर हो चुकी है। बच्चों की पढ़ाई पूरी तरह से
ट्रैक से उतर चुकी है। लेकिन शिक्षा विभाग का प्रयास रहेगा कि स्कूल खुलने के बाद
सभी कमियों को ठीक कर लिया जाए।
बहरहाल कोरोना संकट के समय सरकार द्वारा किये जा रहे प्रयासों से
लोगों को राहत तो मिली है, लेकिन जिस प्रकार से शिक्षा
व्यवस्था चौपट हुई है, उसकी भरपाई के लिए सभी को आगे आने की
ज़रूरत है। शिक्षा विभाग जहां अपने स्तर से प्रयास कर रहा है वहीं अभिभावक और समाज
को भी इस दिशा में सोचने और बेहतर कदम उठाने की ज़रूरत है। ऑनलाइन के साथ साथ
कोरोना के सभी नियमों का पालन करते हुए सामुदायिक कक्षाओं के संचालन करने की भी
आवश्यकता है ताकि बच्चों की रुकी हुई शिक्षा निर्बाध गति से चलती रहे। क्योंकि इस
प्रकार के किसी नए सुझावों पर यदि अमल नहीं किया गया तो आने वाले समय में बच्चों
की पढ़ाई को जारी रख पाना मुश्किल हो सकता है। जिस प्रकार से कोरोना की दूसरी लहर
तेज़ी से अपना पांव पसार रही है ऐसे में शिक्षा पर फिर से खतरे के बादल मंडराने लगे
हैं। यदि फिर से लॉकडाउन लगता है तो शिक्षा व्यवस्था पर ग्रहण लगना निश्चित है।
ज़रूरत है ऑनलाइन क्लॉस के विकल्पों को ढूंढने की ताकि इस बार कोई भी बच्चा फोन की
कमी के कारण शिक्षा जैसी बुनियादी आवश्यकताओं से वंचित न रह जाए। (चरखा फीचर)
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