विकास मेश्राम
बासवाड़ा, राजस्थान
समस्त
विश्व की अर्थव्यवस्था कोरोना महामारी से प्रभावित हो रही है। इसमें कोई
भी समुदाय अछूता नहीं है , चाहे वो अभिजात वर्ग हो या आदिवासी समुदाय। दक्षिणी राजस्थान के बांसवाडा जिला आदिवासी क्षेत्र है। जहाँ लोग अपनी
आजीविका को लेकर विभिन्न स्रोतों से कृषि वनोपज आदि पर निर्भर रहते हैं। अधिकांश आदिवासी परिवार लघु एवं सीमांत कृषक हैं जो पूर्ण रूप से वर्षा
आधारित कृषि पर निर्भर हैं।
कटते जंगल और खत्म होते वनों की वजह से
पर्यावरणीय परिवर्तन के चलते एवं बाजार आधारित नीतियों के कारण कृषक कृषि
को भोजन के साथ जोड़ने के बजाय नफा – नुकसान देखने लगे हैं। कोरोना महामारी
की दोहरी मार झेल रहे आदिवासी समुदाय बहुत प्रभावित हुए हैं।
इस दौरान महात्मा गांधीजी के ग्राम स्वराजकी आवधारणा को साकार करके
आदिवासी महिलाएं ग्राम आधारित जीवन के लिए अनिवार्य खाना,कपड़ा, साफ़ पानी
स्वच्छता, रहने को घर , अन्य सभी सामुदायिक जरूरते खुद तैयार करके कृषि
आधारित विकास को समर्पित करते हुए ग्राम स्वराज की अवधारणा के अनुरूप
रास्ता तैयार किया है। इनका प्रयास और बेहतर तरीके से समन्वय हमें नई
विकास की परिभाषाओं को चिह्नित करती है | इसका बेजोड़ उदहारण आदिवासी
महिला “कुकू देवी मोहनलाल मसार” है।
राजस्थान के जिला बांसवाडा ग्राम फलवा पंचायत अंतर्गत आनन्दपूरी की रहने
वाली कुकू
देवी मोहनलाल मसार जीविका चलाने के लिए खेतीबारी को आधार बनाया। कुकू
देवी के पास 3 बीघे खेतीयुक्त जमीन है. जिसमें खरीफ फसल मक्का,
तुवर, मूंगफली , धान (चावल) और रबी में गेहूं , चना की उपज करती हैं। इनके
पास 4 भैंसे, 5 बकरियां आदि है। जिसके अपशिष्ट पदार्थ से जैविक खाद तैयार करके समेकित
व टिकाऊ खेती करती हैं।
कुकू
देवी बीते हुए समय के बारे में बताती हैं कि जैविक खेती के बारे में
मैंने सुना था और मन में इच्छा भी होती थी कि जैविक खेती करूँ | परन्तु
किसी के मार्गदर्शन के अभाव से कर नहीं पा रही थी | ऐसे में 2018 में मुझे
वाग़धारा संस्था के सह्जकर्ता ललिता मकवाना ने महिला सक्षम समूह में
समाविष्ट होने के लिए प्रेरित किया और मुझे सक्षम समूह क्या है , इसकी
भूमिका क्या है? यह महिलाओं के लिए क्यों स्थापित किया गया है इसके बारे
में सक्षम समूह की मासिक बैठक लेकर समय-समय पर जैविक खेती, पोषण वाटिका,
बीज संवर्धन संरक्षण इनके बारे में बताया। 2016 के तात्कालीन
सहजकर्ता मगनलाल तनगा ने वाडी परियोजना के तहत सहजन , लिम्बू , आम के पौधे
दिए थे। उन पौधों का हमने खेतों में रोपकर उसकी देखभाल शुरू की।
पिछले डेढ़ साल से कोरोना की वजह से हमारे समुदाय में रोजगार और आजीविका पर बुरा असर
पड़ा है | परन्तु मेरे आजीविका पर कोई बुरा असर नहीं पड़ा क्योंकि मुझे वाग़धारा संस्था ने 2019 में सब्जी बीज किट, 5 किलो हल्दी और 5 किलो
अदरक दिया था। जिससे अच्छी आमदनी हुई। लॉकडाउन के दौरान मैंने 150 किलो
लिम्बू फतेपुरा के सब्जी वाले व्यापारियों को 130 रूपये के भाव से बेचे। जिससे मुझे कुल 19500/-रुपये मिले। 5 किलो हल्दी से 25 किलो हल्दी की उपज
करके 20 किलो हल्दी 100 रुपये के भाव से बेचने पर मुझे 2000/- रुपये मिले
| मेरे खेत में 1.5 क्विंटल प्याज की उपज हुई थी, जिसमे मैंने 1 क्विंटल
प्याज 20/ रुपये किलो के भाव से 2000/ रुपये में बेच दिए। अगस्त –
अक्टूबर 2019 माह में 50 किलो भिन्डी, 40 किलो ग्वारफली, और 1 क्विंटल ककड़ी
क्रमश: 40/ रुपये किलो, 40/ रुपये किलो, और 20/ रुपये किलो के भाव से
सब्जी व्यापारी हमारे घर पर आकर खरीदकर ले गये। मुझे कुल 5600 रुपये
की आमदनी हुई।
कुकू देवी
वागधारा द्वारा संचालित महिला सक्षम समूह की सदस्य के तौर पर जुड़ने के बाद
से पूरी तरह कोरोना काल जैसी महामारी में भी अपने परिवार को चलाने में
आत्मनिर्भर हुई। इस तरह उन्होंने अपनी आजीविका भी बढाई और पिछले 6
वर्ष से बाजार से कोई भी बीज नहीं ख़रीदी और बीज स्वराज की अवधारणीय
परिकल्पना अपनाई। उस संग्रहण बीज में मूंग, उडद, सफेद मक्का, चावल (जीरा
धान) , चना, के बीज घर में संवर्धन संरक्षित करके खेतों में उपज करती है। कुकू देवी ने अपनी आजीविका को कोरोना काल में बढ़ाया है।
0 टिप्पणियाँ