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कुपोषण से मुक्ति के लिए वाग्धारा का उल्लेखनीय प्रयास

                


विकास मेश्रा

राजस्थान प्रांत के बांसवाड़ा जिले के सिमलखेड़ा गांव के युवा सोनलता सुरेश डिन्डोर का कुपोषण पर उल्लेखनीय कार्य मील का पत्थर साबित हो रहा है।

विशेष रिपोर्ट

ग्लोबल हंगर इंडेक्स 2020 के अनुसार भारत में कुपोषण की स्थिति 107 देशों में से 94 स्थान पर है। भारत के संदर्भ में यह डराने वाला आंकड़ा हैं, क्योंकि भारत अपने पड़ोसी देशों नेपाल, बांग्लादेश, पाकिस्तान और इंडोनेशिया से भी पीछे है।


रिपोर्ट के अनुसार भारत में 14 फीसदी लोग कुपोषण के शिकार है जबकि 37 फीसदी बच्चे अपनी उम्र के हिसाब से छोटे कद के है। कोरोना महामारी के इस दौर में ऐसी बहुत सी बीमारियां हैं, जो आज भी मानव जीवन को धीरे धीरे अपना शिकार बना रही हैं। लेकिन उसकी तरफ किसी का ध्यान नहीं जा रहा है। इन्हीं में एक कुपोषण भी है, जो युवाओं विशेषकर किशोरी बालिकाओं में काफी पाया जा रहा है। इसका परोक्ष रूप से नकारात्मक प्रभाव आने वाली पीढ़ी के स्वास्थ्य पर देखने को मिलेगा। 


शरीर के लिए आवश्यक संतुलित आहार लम्बे समय तक नहीं मिलना ही कुपोषण है। इसके कारण बालिकाओं और महिलाओं की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है। जिससे वह आसानी से कई तरह की बीमारियों की शिकार बन जाती हैं। अतः कुपोषण की जानकारी होना अत्यंत आवश्यक है। ऐसेही कुपोषण से निजात पाने वाली सोनलता  सुरेश डिन्डोर नामक महिला  ने        

 

    स्वस्थ शिविर में साप सीडी के माध्यम से प्रशिक्षण देते सहजकर्ता 

सोनलता सुरेश डिन्डोर ग्राम सिमलखेडा सज्जनगढ़ तहसील  में रहने वाली आदिवासी महिला उनके परिवार में  पति सहित  लड़का  लड़की कुल चार लोग रहते है | उनके पास वर्षाआधारित 3 बीघा कृषि भूमि है | आमतौर पर कृषि भूमि में मक्का, तुवर, और कपास नगदी फसल के रूप में उपज होती है | वर्षाआधारित खेती होने के कारण उत्पादन में कमी भी आति है | वर्षपर्यन्त  हमारे खाने की जरूरते पूरी भी नहीं हो पाती | वैसे तो मै BPL श्रेणी में होने से PDS से गेहूं , चीनी मिलती है | लेकिन वह मेरे परिवार के लिए पर्याप्त नहीं है , इसीलिए रोजगार हेतु बाहर मजदूरी के लिए जाना पड़ता है |  

सोनलता  बताती है कि जब मै गर्भवती थी तब मेरे पति ने मेरा अच्छे से ख्याल रखा था | मेरी देखभाल अच्छे से हो रही थी | समय – समय पर ICDS सेंटर पर टीकाकरण करने जाती थी | 22 मई 2017 को मेरे बेटे अनुज का जन्म सज्जनगढ़ के सरकारी  अस्पताल में नार्मल डिलेवरी हुआ  | डॉक्टर  ने मुझे बताया कि  मेरे बच्चे का वजन 4.5 किलो है और आपमें केल्शियम की कमी है | वैसे मुझे भी यह आभास हो रहा था कि मेरे शरीर में केल्शियम की कमी है , क्यूंकि मेरे जोड़ो और शरीर में दर्द होने लगता था और थकान भी हो रही थी मेरे बच्चे का वजन ज्यादा होने की चिंता भी मुझे हो रही थी | डॉक्टर  के परामर्श से मै समय-समय पर केल्शियम की गोलिया लेने लगी | परन्तु मेरे स्वास्थ्य में कोई सुधार नही हो रहा था |   

 

बच्चो का वजन करते हुए सहजकर्ता

ऐसे में “वाग़धारा” संस्था के सहजकर्ता कमलेश ताबियार  ने मुझे “वाग़धारा” द्वारा गठित महिला सक्षम समूह के बारे में जानकारी दी और मुझे इससे जुड़ने का अनुरोध किया | समय-समय पर सक्षम समूह की मासिक बैठक में मै सहभागी होने लगी | और मुझे सक्षम समूह की भूमिका क्या है इसके बारे में मुझे पता चला | और वहां मुझे पोषण वाटिका क्यू आवश्यक है , कुपोषण के लिए यह किस तरह कारगर साबित होती है , इसके बारे में मुझे अवगत करवाया | मैंने “वाग़धारा” से बीज किट लेकर अपने खेत और घर पर  जगह उपलब्ध थी उसमे पोषण वाटिका लगाई | 


उस पोषण वाटिका लगाने में तकीनीकी मार्गदर्शन “वाग़धारा” के सहजकर्ता कैलाश तबियार एवम स्वराज मित्र सुनीता पारगी  ने किया  और वर्मीकम्पोस्ट , दशपर्नी इसके बारे में प्रशिक्षण दिया | मैंने अपने पोषण वाटिका में भिण्डी, चावला, टिंडी ,टमाटर, करेला, बेंगन, ग्वार फली, मिर्ची, पालक, मैथी , गिलकी और लौकी आदि सब्जियां लगाई और परिवार के साथ खाई | “वाग़धारा” ने मुझे केवल पोषण वाटिका लगाने हेतु प्रेरित नही  किया , अपितु मेरे और बच्चों के स्वास्थ् प्रति कुपोषण मुक्त करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई | 

“वाग़धारा” संस्था की सहजकर्ता कमलेश ताबियार , स्वराज मित्र स्वास्थ्   के बारे   बताती हैं कि इस क्षेत्र की महिलाओं के लिए यह काम आसान नहीं था। उन्हें एक महीने तक घर-घर जाकर इसके लिए तैयार किया। तब जाकर वह 20 महिलाओं को जोड़कर समूह बना पाई थी।


 इसके बाद महिलाओं की उन्मुखीकरण के लिए बैठकें हुईं। इन बैठकों में आशा, आंगनबाड़ी कार्यकर्ता, गर्भवती और धात्री महिलाओं के अलावा रोजगार सहायक और सरपंच आदि उपस्थित रहते थे। बैठक में महिलाओं को योजनाओं की जानकारी देने और उनके पोषण की समस्याओं का समाधान खोजा जाने लगा। महिलाओं को प्रशिक्षण , शैक्षणिक  ग्राम स्तरीय कार्यशाला के माध्यम से उनकी क्षमता    क्षमता वर्धन किया   गया ।  राजकीय  कर्मचारियों से सीधा संवाद करने के लिए उन्हें तैयार किया गया। इसके बाद जैविक पोषण वाटिका कैसे बनाया जाये और जैविक खाद बनाने की विधि आदि भी उन्हें सिखाई गई। 

बजाज  परियोजना के तहत 2020  में मेरे गाँव में स्वास्थ्य शिविर आयोजित किया था | उसमे मुझे सुशीला पारगी उस शिविर में ले गई | वह शिविर 15 दिनों तक चला जो प्रतिदिन 2 घंटे चलता था | जिसमे स्वास्थ्य के प्रति मुझे अपने स्वास्थ्य का किस तरह ख्याल रखना चाहिए उसके बारे में सहजकर्ता कमलेश तबियार , आँगनवाड़ी कार्यकर्ता, आशा कार्यकर्ता इन्होने टीकाकरण, बच्चों के ध्यान  कैसे रखना चाहिए इसके बारे में बताया | उस शिविर में तक़रीबन 30 महिलाए और 23 बच्चे शामिल हुए थे | हमने वहां पर विविध उपक्रम के माध्यम से पोषण थाली बनाई और गुड के लड्डू बनाने का सिखा |  

 

शिविर में लम्बाई नापते सहजकर्ता

“आंगनवाडी कार्यकर्ता हितु पटेल , आशा सहयोगी ललिता परमार इनका इस शिविर के बारे में कहना है कि यह शिविर विशेषत: गर्भवती, धात्री महिलाओं के लिए लाभकारी रहा | इसमें पोषण थाली बनाना , सांप सीडी  के खेल के माध्यम से स्वास्थ्य के प्रति कैसी सावधानी बरतनी पड़ती है , इसके बारे में बताया गया | देशी बिज , देशी सब्जी , देशी खाद , जैविक पोषण वाटिका आदि के  बारे में महिलाओ को बताया गया | इस तरह के शिविर हमारे ग्रामीण अचल में होने की और जरूरत है | “वाग़धारा” के प्रयास से कुपोषण में कमी आ रही है | जहाँ सरकारी स्वास्थ्य सुविधा पहुँचने में दिक्कत आति है , वहां “वाग़धारा” संस्था का यह प्रयास प्रशंसनीय है “ |

 बजाज  परियोजना के तहत मुझे पोषण किट आवंटित किये गये | इसमें प्रचुर मात्रा में पौषक तत्व थे | वह मैंने अपने बच्चों को खिलाया और मैंने भी खाया | उस शिविर में मेरा और मेरे बच्चों का वजन मापा गया , खून का टेस्ट किया गया , बच्चों की लम्बाई मापी गई  जिससे यह ज्ञात हुआ कि मैंने और मेरे बच्चों ने कुपोषण से निजात पा लिया है | मुझे कुपोषण से मुक्त करने में बजाज परियोजना के तहत  “वाग़धारा” संस्था ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई | मै “वाग़धारा” संस्था  का आभारी हूँ |   

 

 



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