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अफवाहों से जन्मी ये



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दिया आर्य

असोंकपकोट

उत्तराखंड


सही करो फिर भी दुनिया क्यों देती है मुझको ये इल्जाम

नजरिया गलत तो दुनिया का हैमैं क्यों छोड़ दूं अपना काम।।

अफवाहे-ताने सुनते हुए भीमै नहीं रुकी चलते चलते,

अफवाहों से जन्मी ये आग भीअब थक गई जलते-जलते।।

बाधा डालना दुनिया का काममै करुंगी वही जो मन चाहे,

दुनिया वालों ये मेरी किसमत ले जाएगी वही जहां है राहें।।

जिंदगी सबकी अपनी-अपनी जैसे शमा बुझेगी जलते-जलते,

अफवाह से जन्मी ये आग भीअब थक गई जलते-जलते।।

कितने मजाक उड़ाओगे तुमएक पल का जरा धैर्य धरो,

दूसरों का घर झांकते होकभी अपना घर भी देखा करो।।

कितने झूठ जन्माओगेकितने आग अब लगाओगे,

अफवाहों से जन्मी ये आग भीअब थक गई जलते-जलते।।

मुझे मतलब नहीं दुनिया सेमेरी माँ ही मेरा संसार है,

झूठ-फरेब से कोसों दूरमाँ खुशियों का भंडार है।।

सारी अफवाहें मिट गईसूरज के साथ ढलते-ढलते,

अफवाहों से जन्मी ये आग भीअब थक गई जलते जलते।।

                                    (चरखा फीचर)

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