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नालंदा के कण कण में हैं बुद्ध और महावीर

वीरेन्द्र कुमार ओझा

नालंदा से 13 किलोमीटर की दूरी पर स्थित हैं-राजगीर। प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण यहां की वादियां सौंदर्य प्रेमियों का मन मोह लेती है। सैलानियों के अतिरिक्त धर्म के प्रति आस्था रखने वाले लोग यहां सदैव जमावड़़ा ललाग रहा है। विशेषकर बौद्ध व जैन धर्म के माननेवालों का यह प्रमुख तीर्थस्थल है। हरियाली और प्राकृतिक सुंदरता से परिपूर्ण राजगीर का पांच पहाड़ियां विपुलगिरि, रत्नागिरि, उदयगिरि, सोनगिरि और बैभारगिरि का न सिर्फ सांस्कृतिक बल्कि धार्मिक महत्व भी है। मान्यता है कि जैन धर्म के 11 गंधर्वों का निर्माण भी राजगीर में हुआ था। आज भी इन पांचों पहाड़ियों पर बने जैन धर्म के मंदिर हैं। यहीं पर स्थित रत्नागिरि के पर्वत पर बैठकर भगवान बुद्ध ने लोगों को उपदेश  दिया था। 

अपने प्राचीन इतिहास के लिए विश्व प्रसिद्ध नालंदा धार्मिक दृष्टि से बौद्ध एवं जन धर्म का प्रमुख केंद्र है। यहां के कण-कण में बुद्ध और महावीर की स्मृतियां हैं जो इसे पावन बनाती है। भगवान बुद्ध और महावीर का इस भूमिया से गहरा जुड़ाव रहा है  तथा कई बार बुद्ध और महावीर यहां पधारे थे। बुद्ध और महावीर की साधना से दीप्त यह भूमि कभी शिक्षा  का सबसे प्रमुख और प्राचीन केंद्र थे। पुराने नालंदा विश्वविद्यालय के रूप में इसके अवशेष आज भी मौजूद हैं जो इसकी गौरव गाथा के अतीत का चित्रण करते नजर आते हैं तथा इसे देखने के लिए विश्वभर से लोग आते हैं। 

नालंदा से चार किलोमीटर की दूरी पर स्थित है पावापुरी शहर। यहीं पर भगवान महावीर ने निर्वाण की प्राप्ति की थी । यही पर स्थित है जलमंदिर। जिसकी सुंदरता बरबस ही लोगों का मन मोह लेती है। यह मंदिर भगवान महावीर के पार्थिव के अवशेष  पर स्थित है। इन्हीं कारण से यह शहर भगवान महावीर के मतावलंबियों को अत्यंत प्रिय है। कहा जाता है कि भगवान महावीर को यही मोक्ष की प्राप्ति हुई थी। पावापुरी स्थित यह जलमंदिर जलाशय के बीच स्थित है। जिससे खिले कमल उस मंदिर की सुंदरता को और भी मोहक बनाते हैं। 

विमान के आकार में निर्मित इस मंदिर का निर्माण भगवान महावीर के बड़े भाई राजा नंदिवर्धन ने कराया था। मंदिर मे जाने हेतु जलाशय के किनारे से मंदिर तक 600 फुट लंबा पत्थर का पुल बनाया गया है। किंवदंती है कि भगवान महावीर के अंतिम संस्कार में बड़ी संख्या में लोगों ने भाग लिया था। अवशेष  लेने के कारण यहां एक बड़ा गढ़ा बन गया था जो आज जलाशय के रूप में लोगों के मन को गहरा सुकून देता है। सफेद संगमरमर से निर्मित इस मंदिर के फर्श पर भगवान महावीर के चरण चिह्न खुदें हैं। यहीं पर भगवान महावीर ने अपना अंतिम उपदेश दिया था। 

नालंदा से 13 किलोमीटर की दूरी पर स्थित हैं-राजगीर। प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण यहां की वादियां सौंदर्य प्रेमियों का मन मोह लेती है। सैलानियों के अतिरिक्त धर्म के प्रति आस्था रखने वाले लोग यहां सदैव जमावड़़ा ललाग रहा है। विशेषकर बौद्ध व जैन धर्म के माननेवालों का यह प्रमुख तीर्थस्थल है। हरियाली और प्राकृतिक सुंदरता से परिपूर्ण राजगीर का पांच पहाड़ियां विपुलगिरि, रत्नागिरि, उदयगिरि, सोनगिरि और बैभारगिरि का न सिर्फ सांस्कृतिक बल्कि धार्मिक महत्व भी है। मान्यता है कि जैन धर्म के 11 गंधर्वों का निर्माण भी राजगीर में हुआ था। आज भी इन पांचों पहाड़ियों पर बने जैन धर्म के मंदिर हैं। यहीं पर स्थित रत्नागिरि के पर्वत पर बैठकर भगवान बुद्ध ने लोगों को उपदेश  दिया था। 

धार्मिक संपदाओं से परिपूर्ण यहां स्थित सप्तकर्णि गुफा, सोन गुफा, मनियार मठ, तपोवन, वेनीवन तथा जापानी मंदिर में पूजा-अर्चना एवं दर्शन हेतु लोगों की भीड़ जुटती है। यहां भारत हीं नहीं वर्मा, भूटान, चीन, जापान सहित कई देषों से बुद्ध श्रद्धालुओं का यहां आना-जाना लगा रहता है राजगीर में प्रति तीन वर्ष पर मलमास मेला लगता है जिसमें देश, विदेश से लाखों की संख्या में श्रद्धालु जुटते हैं। यहां स्थित विश्व शांति स्तूप की सुंदरता देखने लायक है। शांतिस्तूप के समीप ही वेणु वन है जहां भगवान बुद्ध एक बार पधारें थे।   

Source :

Bihar ke  Lokthirth


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