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पत्रकार की महफ़िल, खिले थे चेहरे नेताजी के

 पत्रकार की महफ़िल

पत्रकार की महफ़िल खिले थे चेहरे नेताजी के


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एक पत्रकार महोदय ने 

महफ़िल सजायी ,

उसमें एक नेता जी को बुलाया।


तनी थी भौंहें पत्रकार की,

सवाल सोंचा  कड़वा था ,

खिले थे चेहरे नेताजी के,

जवाब इनबॉक्स में पड़े थे ।

पत्रकार ने जब सवाल दागा,

नेताजी जी दाग दिए जवाब,

दागा-दागी का ये सिलसिला,

चलता  रहा लाजवाब।

दर्शक देख रहे थे,

सुन रहे थे,

और सोच रहे थे -

कि

इस अपनेपन के दागा-दागी    में

क्यों न दाग दें हम भी एक गुलाब

समय ने देखा,

संयमित रहा,

मन ही मन सोचा -

दर्शक, नेता, पत्रकार मिलकर

जब खुद ही कर रहे बंटाधार,

तो मेरा क्या है !

मै कौन हूं?

चिंता करे अब तारणहार

कि- 

कौन करेगा नैया पार!

कौन करेगा नैया पार!

कवि  : अमरेंदर कुमार 

 युवा कवि व  शिक्षक अमरेंद्र कुमार की यह कविता *पत्रकार की महफ़िल* वर्तमान समय में चौथे स्तम्भ की गिरती साख का  यथार्थ कथ्य है. 


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