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लड़कियों के सपने परंपराओं ने तोड़े

दीक्षा आर्य

सिमतोली, कपकोट

बागेश्वर, उत्तराखंड



हमारे भी है सपने, हम भी कुछ बने

हम भी कुछ कर के दिखाएं

मगर लोगों के ताने, सुन-सुनकर सभी सपने तोड़े

घुट घुट कर मरते रहे, पर मुंह न खोले

चेहरे पर नकली हंसी दिखाते रहे, आंसू छुपाते रहे

पर परंपरा न तोड़ी, जमाना बोला लड़कियों के नहीं होते सपने

मगर हिम्मत न छोड़ी और न हिम्मत तोड़ी

परंपरा को छोड़े, बेटी को पढ़ाएं, और आगे बढ़ाएं

सपने न तोड़ें, हो सके तो साथ निभाएं।


(चरखा फीचर)

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