ज्वलंत मुद्दे

6/recent/ticker-posts

दिव्यांगता शारीरिक और मानसिक होने से ज्यादा हमारी सोच में है

 हरीश कुमार

पुंछजम्मू


हर वर्ष दिसंबर को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर दिव्यांग व्यक्तियों का दिवस मनाने की शुरुआत हुई थी। इसकी शुरुआत 1992 मे संयुक्त राष्ट्रीय संघ द्वारा की गई थी। यह दिवस दिव्यांगों के प्रति करुणाआत्मसम्मान और उनके जीवन को बेहतर बनाने के उद्देश्य से मनाया जाता है। इसका एक और उद्देश्य समाज के सभी क्षेत्रों में विकलांग लोगों के अधिकारों को बढ़ावा देना भी है। इसके अलावा राजनीतिकसामाजिकआर्थिक और सांस्कृतिक जीवन के हर पहलू में उनके बारे में जागरूकता बढ़ाना है। संयुक्त राष्ट्र में दिव्यांगों के अधिकारों का कन्वेंशन 2006 में अपनाया गया। संयुक्त राष्ट्र की महासभा ने 1983 से 1992 तक उनके लिए संयुक्त राष्ट्र संघ के दशक की घोषणा की थी। ताकि वह सरकार और संगठनों को विश्व कार्यक्रम में अनुशासित गतिविधियों को लागू करने के लिए एक लक्ष्य प्रदान कर सकें। इसके बाद 1992 से हर वर्ष दिसंबर को अंतर्राष्ट्रीय विकलांग (दिव्यांग) दिवस के रूप में मनाया जाने लगा। 

दिव्यांगता शारीरिक और मानसिक होने से ज्यादा हमारी सोच में है


यह जानना बहुत जरूरी है कि आखिरकार दिव्यांगता क्या हैदरअसल यह किसी व्यक्ति के शरीर में होने वाली शारीरिक और मानसिक कमी होती है। जो प्राकृतिक भी हो सकती है और परिस्थितिजन्य भीजिससे दिव्यांग व्यक्ति अन्य लोगों पर आश्रित होने के लिए मजबूर हो जाते हैं। आज के समय को हम वैज्ञानिक युग कहते हैं। लेकिन नेत्रहीनपोलियोग्रस्तअपंग लोगों को आज के इस युग में भी हम ठीक नहीं कर पा रहे हैं। अंतरराष्ट्रीय विकलांग दिवस इन्हीं सभी मुद्दों को ध्यान में रखकर पूरे विश्व द्वारा किया गया एक सराहनीय प्रयास है। जिसकी सहायता से यह कोशिश की जाती है कि ऐसे व्यक्तियों के प्रति लोगों का व्यवहार सकारात्मक बने .


Popular Article :

घरेलू कला से अपनी पहचान बनाती विभा

घर के कामों तक सीमित कर दी गई हैं किशोरियां

शादी के नाम पर बिकती लड़कियां

डिजिटल संसाधनों से सशक्त होती ग्रामीण किशोरियां


दिव्यांगता शारीरिक और मानसिक होने से ज्यादा हमारी सोच में है

इस वर्ष 2022 में अंतर्राष्ट्रीय विकलांग दिवस मनाए जाने की थीम (भविष्य के लिए निर्धारित किए गए सभी स्तर पर लक्ष्यों की प्राप्ति है) आखिरकार किन उद्देश्यों को लेकर यह दिवस मनाया जाता है। यह जानना बहुत जरूरी है। हमारे परिवेश के आस-पड़ोसगली मोहल्लेअथवा गांव में ऐसे कितने लोग हैं। जिनके दिव्यांग होने की जानकारी हमें नहीं होती है. संयुक्त राष्ट्रीय संघ द्वारा यह दिवस मनाने का उद्देश्य यही है कि सामाजिकराजनीतिकआर्थिकधार्मिकऔर सांस्कृतिक क्षेत्र में उनके अधिकारों का शोषण कोई अन्य व्यक्ति ना कर सके। उन्हें भी समाज में सम्मान अधिकार मिल सके। जो आम व्यक्ति को मिल रहे हैं ताकि वह भी सर उठा कर अपना जीवन व्यतीत कर सकें। 


भारत सरकार ने भी दिव्यांगों के लिए कई तरह की योजनाएं बनाई है। इसमें से कुछ योजनाएं केंद्र सरकार की ओर से तोकुछ राज्य सरकार की ओर से चलाई जा रही हैं। सरकार द्वारा विकलांग पेंशन योजना भी है। जिससे कि वह सशक्त एवं आत्मनिर्भर बन सकें। परंतु अब देखने वाली बात यह है कि सरकार की योजनाएं जमीनी सतह पर किस तरह से ऐसे व्यक्तियों की मदद कर पा रही हैकेंद्रशासित प्रदेश जम्मू कश्मीर के सीमावर्ती जिला पुंछ के एक छोटे से गांव मंगनाड के रहने वाले हुकुमचंद इसके उदाहरण हैं. 60 प्रतिशत दिव्यांग हुकुमचंद अपने दोनों हाथों और घुटनों के बल पर चलते हैं। उनका कहना है कि सरकार द्वारा मुझे एक स्कूटी दी गई है। जिससे मुझे बहुत ही लाभ हुआ है।


परंतु वह स्कूटी मुझे घर से काफी दूर सड़क पर लगानी पड़ती है। उसके बाद मुझे अपने घर तक कच्चे रास्ते से जाना पड़ता है। चार वर्ष पहले सरकार ने यहां पर रास्ता भी बनवाया था। परंतु वह कुछ ही साल में ही पूरी तरह खराब हो गया। मैंने अपने पंच और सरपंच से भी बात की और कहा की इस रास्ते को ठीक किया जाए ताकि मेरे लिए थोड़ी राह आसान हो सके। परंतु उनका कहना है कि 20 साल से पहले इसकी दोबारा रिपेयरिंग नहीं हो सकती। अभी केवल साल ही हुए हैं इस रास्ते को तैयार किए हुएतो लगभग 16 वर्ष अब मुझे क्या इसी रास्ते से अपने हाथ और घुटनों के बल सड़क तक पहुंचना होगाजबकि बारिश में घर से बाहर निकलना बहुत ही कठिन हो जाता है। 

 

उनकी मुश्किल यहीं ख़त्म नहीं होती है. उनका कहना है कि मैंने कई बार बैंक से लोन के लिए आवेदन किया ताकि अपना व्यापार कर सकूं। परंतु बैंक के कर्मचारी मुझसे गवाह लाने को कहते हैं. परंतु मुझ दिव्यांग के लिए कोई गवाह बनने के लिए तैयार नहीं है. अब सरकार को भी यह ध्यान देना चाहिए कि दिव्यांगों के लिए लोन योजना तो बनाई है परंतु क्या सरकारी विभाग के कर्मचारी की गवाही के सिवाय कोई और रास्ता नहीं हैजिससे हमें ज़्यादा भागदौड़ किए बिना ही कर्ज मिल सकेअगर यह मुमकिन नहीं तो फिर दिव्यांग दिवस का उद्देश्य क्या रह जाता हैबात केवल यही नहीं है बल्कि सरकार की ओर से दिव्यांगों की दी जाने वाली पेंशन भी पर्याप्त नहीं है. इस संबंध में जम्मू-कश्मीर हैंडीकैप वेलफेयर एसोसिएशन के एक सदस्य अजय कुमार शर्मा कहते हैं कि 60 प्रतिशत दिव्यांग हुकुमचंद से बात करने पर पता लगा कि उन्हें अभी मात्र 1000 रू ही मासिक पेंशन दी जा रही हैजो पर्याप्त नहीं है. ऐसे में एसोसिएशन इसे बढ़ाकर 6000 रुपए की मांग करता है. ताकि ऐसे लोग सम्मानजनक जीवन जी सकें.


एक बात तो साफ है कि अंतरराष्ट्रीय दिव्यांग दिवस मनाते हुए अब 30 वर्ष पूरे होने जा रहे हैं। परंतु आज भी दिव्यांग किसी ना किसी मुद्दे से जूझते हुए नजर आ रहे हैं। आज भी उनकी सरकार से कई मांगे है। परंतु अगर कोई बड़ी मांग है तो वह है पेंशन की. ऐसे में सरकार को चाहिए कि उनकी पेंशन और सुविधाओं को बढाएजिससे वह एक सम्मानपूर्वक जिंदगी गुजार सकें. लेकिन इसके साथ साथ समाज का भी एक बहुत बड़ा दायित्व है कि वह भी अपने आस-पड़ोस के दिव्यांग व्यक्तियों को अपने साथ कदम से कदम मिलाकर आगे ले जाने में अपना योगदान दें। जिससे वह खुद को कमज़ोर न समझे. (चरखा फीचर)

Writer 

दिव्यांगता शारीरिक और मानसिक होने से ज्यादा हमारी सोच में है




एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ