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शिक्षा के क्षेत्र में परिवर्तनकारी दौर से गुज़रता बिहार

 फूलदेव पटेल

मुजफ्फरपुर, बिहार
सदियों से यह माना गया है कि शिक्षा के बिना मनुष्य पशु के समान है. मानव सभ्यता का अस्तित्व शिक्षा से ही जुड़ा हुआ है. हमारी सभ्यता व संस्कृति का विकास भी मानव की जिज्ञासा, ज्ञान की चाह तथा विभिन्न नवीन कौशलों को जानने की ललक के कारण ही नित्य नवीन खोज, आविष्कार और अनुसंधान आदि का विकास संभव हुआ है. सभी के केंद्र में शिक्षा ही रहा है. आज भारत के नौनिहालों को अच्छी शिक्षा देने-दिलाने की होड़ मची है. ऐसे में सामान्य शिक्षा भी महंगी होती जा रही है. वर्तमान में नयी शिक्षा नीति के आने से कोई खास असर नहीं दिखाई देता है. दरअसल देश में ही विभिन्न राज्यों के बीच शिक्षा की स्थिति अलग-अलग रही है. केरल में जहां राष्ट्रीय औसत 77.70 प्रतिशत की तुलना में कहीं अधिक 96.2 प्रतिशत साक्षरता की दर है, वहीं बिहार इस मामले में देश का सबसे पिछड़ा 63.8 प्रतिशत की साक्षरता वाला राज्य है.

शिक्षा के क्षेत्र में परिवर्तनकारी दौर से गुज़रता बिहार

नीति आयोग की 2020-21 की रिपोर्ट के अनुसार भी बिहार देश का सबसे पिछड़ा राज्य है. रिपोर्ट के मुताबिक 115 क्षेत्रों में बिहार को 100 में से मात्र 52 अंक मिले जो अन्य राज्यों की तुलना में सबसे कम है. जिसमें गरीबी, खराब शिक्षा तथा इंटरनेट तक कम पहुंच विकास में बाधक माना जाता है। इस कमी को दूर करने के लिए बिहार सरकार ने बहुआयामी व सर्वांगीण शैक्षिक विकास के लिए कौशल आधारित शिक्षा की ओर अधिक जोड़ दे रही है। जिससे गरीबी के साथ-साथ शैक्षिक विकास में भी बिहार अग्रणी बन सके।

इस संबंध में बिहार के मुजफ्फरपुर जिले के धरफरी उच्च माध्यमिक विद्यालय के शिक्षकों ने बताया कि बिहार सरकार शिक्षा के सुधार के लिए 22 प्रकार की योजनाएं चला रही है। जिससे सभी वर्गों के विद्यार्थियों को इसका लाभ मिल रहा है। साथ ही शिक्षकों की खोई हुई प्रतिष्ठा भी वापस आ रही है। इस मामले में अभिभावकों की भूमिका भी अहम है। राज्य को शिक्षा के मामले में अव्वल व उत्कृष्ट बनाने के लिए अभिभावकों को चाहिए कि वह अपने बच्चों को नियमित विद्यालय भेजें। इस संबंध में उच्चतर माध्यमिक विद्यालय धरफरी की 9वीं की छात्रा गीतांजलि कहती है कि विद्यालय में बहुत बढ़िया पढाई हो रही है। सभी विषयों के शिक्षक समयानुसार आ रहे हैं और विषय भी समय पर पूरी हो रही है। वहीं अभिभावक राकेश कुमार बताते हैं कि पहले हमारे बच्चे सिर्फ हाजिरी लगाने के लिए विद्यालय जाते थे। हमलोगों को उन्हें शिक्षित बनाने के लिए बाहर से कोचिंग देना पड़ता था। लेकिन अब बहुत ही अच्छी पढ़ाई हो रही है। पारू प्रखंड के शिक्षा पदाधिकारी उत्तम कुमार बताते हैं कि सरकार की ओर से हमें आदेश दिया गया है कि प्रत्येक विद्यालय में जाकर बच्चों और उनके अभिभावकों को योजना की जानकारी देना तथा विद्यालय में 75 प्रतिशत उपस्थिति का आकलन करना अनिवार्य है। वहीं प्रखंड विकास पदाधिकारी ओम राजपूत कहते हैं कि शिक्षा के क्षेत्र में बिहार सरकार की मुहिम अब जमीन पर उतरती दिख रही है।

शिक्षा के क्षेत्र में परिवर्तनकारी दौर से गुज़रता बिहार

वर्तमान में बिहार सरकार शिक्षा के विकास के लिए कई महत्वाकांक्षी योजनाओं का क्रियान्वयन कर रही है। सरकार सात निश्चय योजना के तहत शिक्षा लोन के माध्यम से प्रत्येक छात्र-छात्राओं को उच्च शिक्षा जैसे- मेडिकल, इंजीनियर, आईआईटी, यूपीएससी, बीटेक, आईटीआई, डीएलडी, बीएड आदि के लिए डीबीटी के माध्यम से मदद कर रही है। बिहार के विद्यार्थी अब स्टूडेंट क्रेडिट कार्ड के माध्यम से भी अपनी पढाई कर रहे हैं। कक्षा 1-8 वीं तक के छात्र-छात्राओं को निःशुल्क पाठ्य-पुस्तक, मुख्यमंत्री पोशाक योजना आदि सीधे छात्रों के खाते में हस्तांतरित किए जा रहे हैं। वर्ग 1-2 तक छात्र-छात्राओं को 600 रुपये सालाना, वर्ग 3 से 5 वर्ग के छात्र-छात्राओं को 700 रुपये सालाना, वर्ग 6 से लेकर 8 वीं तक के छात्र-छात्राओं को 1000 एक हजार रुपये तथा वर्ग 9-12वीं तक के छात्र-छात्राओं को 1500 रुपए सालाना डीबीटी के माध्यम से खाते में भेजने का प्रावधान है।

दूसरी ओर मुख्यमंत्री छात्रवृति योजना के माध्यम से वर्ग 1-4 तक के छात्र-छात्राओं को 600 रुपये प्रति वर्ष, वर्ग 5-6 तक के छात्र-छात्राओं को 1200 रुपये प्रति वर्ष और वर्ग 7-10वीं तक के छात्र-छात्राओं को 1800 रुपये प्रति वर्ष डीबीटी के माध्यम से खाते में भेजे जाते हैं। मुख्यमंत्री किशोरी स्वास्थ्य योजना जो वर्ग 7-12 वीं तक के छात्राओं को 300 सालाना डीबीटी के माध्यम से खाते में ही भेजे जाते हैं। मुख्यमंत्री साइकिल योजना जो वर्ग 9वीं मे पढ़ रही सभी छात्राओं को 3000 रुपये डीबीटी के माध्यम से खाते में भेजे जा रहे हैं। जबकि मुख्यमंत्री प्रोत्साहन योजना जो बिहार विद्यालय परीक्षा समिति से प्रथम श्रेणी में आने वाले सभी कोटि के छात्र-छात्राओं को एक बार 10000 की राशि डीबीटी के माध्यम से खाते में दिए जाते हैं। वहीं मुख्यमंत्री मेधावृति योजना बिहार विद्यालय परीक्षा समिति के माध्यम से द्वितीय श्रेणी से उतीर्ण छात्र-छात्राओं जो अनु. जाति एवं अनु. जनजाति के छात्र-छात्राओं को 8000 डीबीटी के माध्यम से खाते में दिए जा रहे हैं।

बिहार सरकार शिक्षा को सुदृढ़ और बेेहतरीन बनाने के लिए अनु.जाति, जनजातियों के लिए मुख्यमंत्री इन्टरनेट मेधावृति योजना के तहत प्रथम श्रेणी से उतीर्ण छात्राओं को 15000, द्वितीय श्रेणी से उतीर्ण छात्राओं को 10000 रुपये डीबीटी के माध्यम से खाते में भेजी जाती है। वहीं, मुख्यमंत्री इंन्टर पास कन्या उत्थान योजना के माध्यम से सभी वर्गों के छात्राओं को प्रथम श्रेणी से उतीर्ण होने पर और अविवाहित छात्राओं को 25000 पच्चीस हजार रुपये डीबीटी के माध्यम से दी जा रही है। मुख्यमंत्री स्नातक पास कन्या उत्थान योजना के तहत अविवाहित रहकर स्नातक की पढ़ाई करने वाली सभी वर्ग के छात्राओं को स्नातक पास होने पर 50000 पचास हजार रुपये डीबीटी के माध्यम से खाते में भेजी जाती है। बिहार सरकार के द्वारा पोस्ट मैट्रिक छात्रवृत्ति योजना जो छात्र आगे की पढ़ाई छोड़कर सरकारी वैकेंसी के लिए फर्म भरते हैं उन्हें दो वर्षों तक के लिए प्रत्येक महीने 1000 रुपये देने का प्रावधान है। विद्यालय में शिक्षकों की कमी को दूर करने के लिए बीपीएसी के माध्यम से लगभग तीन लाख शिक्षकों की बहाली की गई है। इस बहाली में बिहार के अलावा, उत्तर प्रदेश, झारखंड, पश्चिम बंगाल, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, असम, गुजरात, पंजाब, महाराष्ट्र, राजस्थान आदि अनेक राज्यों के लोगों की भर्ती हुई है।

बहरहाल, शिक्षा की उन्नति के लिए केवल सरकार की ही जिम्मेदारी नहीं है बल्कि योजनाओं का लाभ लेने के साथ-साथ बिहार के गरीब, पिछड़े-अगड़े, दलित व महादलित परिवार के लोगों को अपने बच्चों को स्कूल भेजना भी उतना ही आवश्यक है। सुरक्षित शनिवार के दिन यदि शिक्षक अभिभावक संवाद में अभिभावकों की सहभागिता भी सुनिश्चित हो जाए तो शिक्षा में क्रांतिकारी बदलाव लाया जा सकता है। सरकारी अधिकारियों के लिए निरीक्षण-परीक्षण और जांच जितना आवश्यक है, उतना ही ग्रामीण क्षेत्र के समाजसेवी, बुद्धिजीवियों और सजग नागरिकों का विद्यालय भ्रमण भी आवश्यक है। यानि शिक्षित समाज के निर्माण में सभी की समान भागीदारी आवश्यक है। (चरखा फीचर)

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