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सिसकते रातें कटी हैं हमारी

सिसकते रातें कटी हैं हमारी

हेमा रावल

गरुड़, बागेश्वर
उत्तराखंड


 उड़ सके आसमान तक

उड़ सके आसमान तक, आजादी इतनी देना,
पाबंदी इतनी भी न लगाओ कि वो लड़ न सके,
अपने हक के लिए डर जाए देखकर चार लोगों को,
रखिए अपनी बेटी पर भरोसा, दीजिये उसको मौका,
नाम ऊंचा करेगी आपका, मिलेगा जो उसको मौका,
उड़ सके आसमानों में, भर सके ऊंची उड़ान,
पा ले हर अवसर, बना सके अपनी पहचान,
सही गलत के लिए, लड़ सके अपने हक के लिए,
सुनकर लोगों की बात, न रखे मन में बदनामी की डर,
रखिए भरोसा उस पर, दीजिए उसको पहचान,
फैलाना न पड़े हाथ उसको किसी के सामने,
कर सके वो खुद से शौक अपने पूरे,
बस इतना कामयाब उसको बनने देना,
उड़ सके ऊंचे आसमानों में वो।।

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सिसकते रातें कटी हैं हमारी

 पूजा
सिमतोली, कपकोट
उत्तराखंड

सिसकते रातें कटी हैं हमारी

थोड़ा भी न समझा है हमें,
थोड़ा भी न जाना है,
बस एक बोझ कह दिया हमें,
खुशी न माना, मातम से मिलाया हमें,
अपनी खुदगर्जी में हिस्सा बनाते हमें,
बोझ बनाकर ज़ुबां से बयां करते हमें,
माना है उन्होने हमें पराया,
न मिला हमें आगे बढ़ने का सहारा,
न सुनने को मिले हमें कभी मीठे बोल,
पैदा होते ही सुनी हमने कड़वे बोल,
न जाना है उन्होंने हमें, ना समझा इन्होंने,
अपनी खुदगर्जी में घसीटा है हमें,
तभी तो लोगो को जाना है हमने,
रोते रोते कटी है हमारी रातें,
सिसकते सिसकते ज़ुबां थमी है हमारी।।

(चरखा फीचर)




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