- फुले फिल्म को गांव-गांव में प्रदर्शित करने पर हुई चर्चा
- फुले के संघर्षों ने बहुजनों की जिंदगी में लाये क्रांतिकारी बदलाव
फेस्टिवल में फुले, जय भीम, आर्टिकल-15, छपाक, वाटर जैसी जाति-व्यवस्था, छुआछूत, वैधव्य एवं सामाजिक अन्याय पर केंद्रित फिल्मों पर विस्तारपूर्वक चर्चा की गई।
मुजफ्फरपुर। फुले दंपती ने महिलाओं को शिक्षित करने के लिए जो संघर्ष किया वह भारतीय समाज के लिए क्रांतिकारी बदलाव का वाहक बना। धार्मिक पाखंड को उन्होंने जबरदस्त चुनौती दी। ये बातें चर्चित लेखक व विचारक डॉ हरिनारायण ठाकुर ने प्रगतिशील सिने दर्शक मंच की ओर से आमगोला स्थित शहनाई विवाह भवन में आयोजित 'फुले फिल्म महोत्सव' के दौरान कहीं।
प्रख्यात चिकित्सक डॉ प्रवीण चंद्रा ने भी फुले फिल्म पर प्रकाश डाला और बहुजन समाज के खिलाफ चल रही साजिश को उजागर किया। सीनेटर प्रो. (डॉ) संजय कुमार सुमन ने कहा कि फुले फिल्म को गांव-गांव में दिखाने की जरूरत है।
फेस्टिवल में फुले, जय भीम, आर्टिकल-15, छपाक, वाटर जैसी जाति-व्यवस्था, छुआछूत, वैधव्य एवं सामाजिक अन्याय पर केंद्रित फिल्मों पर विस्तारपूर्वक चर्चा की गई। साथ ही, उक्त फिल्मों के कुछ खास व संदेशपरक दृश्यों को प्रदर्शित कर उसके विषयों व कथानक पर समीक्षकों ने प्रकाश डाला।
कार्यक्रम का संयोजन ललन भगत एवं मंच संचालन डॉ संतोष सारंग ने किया।
इस मौके पर डॉ रमेश ऋतंभर, डॉ सुशांत कुमार, बैजू रजक, डॉ हेमनारायण विश्वकर्मा, डॉ अविनाश कुमार, राकेश साहू, डॉ विष्णुदेव यादव, डॉ श्याम कल्याण, शिवकुमार राय, सुनीता कुमारी, डॉ नीति प्रभा, विजय कुमार, योगेन्द्र रजक, पवन कुमार शर्मा,नागेंद्र राय, नरेश राम, सुरेन्द्र कुमार, दिनेश शर्मा, हरेंद्र कुमार, महेश कुमार शर्मा, उमेश राम आदि मौजूद थे।
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