ज्वलंत मुद्दे

6/recent/ticker-posts

सशक्तीकरण की मिसाल कमतू बरोड़ बकरी पालन से बनीं आत्मनिर्भर

Vikas Meshram

vikasmeshram04@gmail.com

वागधारा राजस्थान 

राजस्थान के दक्षिणी छोर पर बसे बांसवाड़ा जिले की घाटोल तहसील का छोटा-सा गांव बोरदा । इसी गांव में रहती हैं कमतू धनजी बरोड़, 60 वर्षीया एक आदिवासी महिला किसान, जिन्होंने कठिन परिस्थितियों में भी हार नहीं मानी और बकरी पालन के माध्यम से आत्मनिर्भरता की एक नई मिसाल कायम की।
सशक्तीकरण की मिसाल कमतू बरोड़ बकरी पालन से बनीं आत्मनिर्भर
कमतू बरोड़ आज अपने परिवार के साथ एक सम्मानजनक जीवन जी रही हैं। लेकिन यह सफर इतना आसान नहीं था। कुछ साल पहले तक उनका परिवार कठिनाईयों से जूझ रहा था। उनके पति धनजी के साथ दो बेटे और चार पोतियाँ हैं। घर की आर्थिक स्थिति कमजोर थी। खेती के लिए पर्याप्त सिंचाई नहीं थी, बरसाती खेती पर निर्भर रहना पड़ता था। खेतों से इतनी आमदनी नहीं हो पाती थी कि घर का खर्च आराम से चल सके। ऐसे में, उन्होंने बकरियाँ पालने का निर्णय लिया ताकि घर की आय में कुछ इज़ाफ़ा हो सके।

शुरुआत में कमतू ने चार बकरियाँ खरीदीं। उन्होंने उम्मीद की थी कि यह एक स्थायी आजीविका बन जाएगी, लेकिन वास्तविकता कुछ और ही थी। उन्हें बकरी पालन का सही ज्ञान नहीं था न तो उन्हें पोषण का ज्ञान था, न ही टीकाकरण या रोग नियंत्रण की जानकारी। नतीजा यह हुआ कि उनकी बकरियाँ बार-बार बीमार पड़तीं, कई मर जातीं और जो बचतीं उनका वजन कम रहता था।

उचित पशु चिकित्सा देखभाल की पहुँच भी सीमित थी। गाँव में पशु चिकित्सक महीनों में एक बार आता, दवाई महंगी पड़ती और बीमारी के समय इलाज करवाना मुश्किल हो जाता। इस कारण हर साल उनके झुंड का एक तिहाई हिस्सा मर जाता था। यह स्थिति कमतू के लिए हताशा और निराशा का कारण थी।

फिर भी उन्होंने उम्मीद नहीं छोड़ी। वे जानती थीं कि अगर सही मार्गदर्शन मिले तो कुछ बदला जा सकता है।

वर्ष 2018 में कमतू के जीवन में एक नया अध्याय शुरू हुआ, जब वे वागधारा संगठन द्वारा गठित महिला सक्षम समूह से जुड़ीं। यह समूह ग्रामीण महिलाओं को संगठित कर उनके अधिकार, आजीविका और निर्णय क्षमता को सशक्त बनाने की दिशा में कार्य करता है।
सशक्तीकरण की मिसाल कमतू बरोड़ बकरी पालन से बनीं आत्मनिर्भर

वागधारा के सहजकर्ता दिनेश बरोड़ ने गांव में बैठक आयोजित की थी, जिसमें उन्होंने महिलाओं को बताया कि संगठित होकर वे न केवल अपने अधिकारों के लिए आवाज उठा सकती हैं, बल्कि सामूहिक प्रयासों से अपनी आजीविका को भी मजबूत बना सकती हैं। उन्होंने बकरी पालन के उन्नत तरीकों, टीकाकरण, पोषण प्रबंधन और बाजार तक पहुँच जैसी बातों की जानकारी दी। कमतू ने यह सब ध्यान से सुना। उनके भीतर सीखने की ललक जागी और उन्होंने निर्णय लिया कि वे इस समूह की सदस्य बनेंगी। यही निर्णय उनके जीवन का मोड़ बन गया।

महिला सक्षम समूह की मासिक बैठकों में कमतू नियमित रूप से भाग लेने लगीं। वहाँ उन्हें उन्नत बकरी पालन प्रशिक्षण दिया गया, जिसमें उन्होंने सीखा कि बकरियों का सही पोषण कैसे किया जाए, आवास कैसा होना चाहिए, समय-समय पर टीकाकरण क्यों ज़रूरी है और साफ-सफाई का क्या महत्व है।

उन्हें यह भी बताया गया कि अगर बकरियों को संतुलित आहार दिया जाए जिसमें हरी घास, दाने और खनिज तत्व शामिल हों तो उनकी उत्पादकता और स्वास्थ्य दोनों में सुधार होता है। कमतू ने इस प्रशिक्षण को गंभीरता से लिया और घर लौटकर सीखी हुई बातों को व्यवहार में लाना शुरू किया।

उन्होंने अपनी बकरियों के रहने की जगह को साफ़-सुथरा और हवादार बनाया। समय पर टीकाकरण करवाने लगीं और संतुलित आहार देना शुरू किया। धीरे-धीरे उन्होंने देखा कि बकरियाँ अब कम बीमार पड़ने लगीं, उनका वजन बढ़ने लगा और दूध उत्पादन भी बढ़ गया।

कमतू के प्रयासों का असर जल्दी ही दिखने लगा।जहाँ पहले हर साल उनकी बकरियों में से कई मर जाती थीं, वहीं अब मृत्यु दर बहुत घट गई। इलाज पर खर्च कम हुआ और उनकी आमदनी बढ़ने लगी। उन्होंने धीरे-धीरे अपनी बकरियों की संख्या पाँच से बढ़ाकर बीस कर ली।

आज वे हर साल लगभग ₹50,000 रुपये सिर्फ बकरियों की बिक्री से कमाती हैं। इसके साथ ही उनके पास दो भैंसें भी हैं, जिनसे वे सालभर में लगभग ₹20,000 रुपये का घी और दूध बेचती हैं। इस तरह कमतू की कुल वार्षिक आय अब ₹80,000 रुपये के आसपास पहुँच गई है।उनके इस आर्थिक सुधार ने परिवार के जीवन में भी बड़ा परिवर्तन लाया। पहले जहाँ घर की जरूरतें पूरी करना मुश्किल होता था, वहीं अब वे अपने दो पोतों की बी.एस.सी. की पढ़ाई के खर्च खुद उठा रही हैं।

कमतू का बदलाव सिर्फ उनके परिवार तक सीमित नहीं रहा। उनके गाँव की अन्य महिलाएँ भी उनकी कहानी से प्रेरित हुईं। उन्होंने देखा कि कैसे एक साधारण महिला, जिसने कभी औपचारिक शिक्षा नहीं ली, आज अपने ज्ञान और मेहनत से न केवल आत्मनिर्भर बनी, बल्कि दूसरों के लिए भी प्रेरणा का स्तंभ बन गई।

महिला सक्षम समूह की बैठकों में अब कमतू स्वयं एक प्रेरक सदस्य के रूप में हिस्सा लेती हैं। वे अन्य महिलाओं को समझाती हैं कि “संगठित होकर और सही मार्गदर्शन लेकर हम हर मुश्किल को आसान बना सकते हैं।”

बांसवाड़ा जैसे आदिवासी बहुल इलाकों में कृषि पर निर्भरता अधिक है, लेकिन सिंचाई सुविधाओं की कमी और बढ़ते लागत खर्च के कारण खेती अब कठिन होती जा रही है। ऐसे में, बकरी पालन एक महत्वपूर्ण वैकल्पिक आजीविका के रूप में उभरा है।

बकरी पालन में पूंजी निवेश अपेक्षाकृत कम है, जोखिम कम है और आय का प्रवाह निरंतर बना रहता है। खासकर महिलाओं के लिए यह ऐसा कार्य है जिसे वे घर के आस-पास रहकर भी कर सकती हैं। इसीलिए महिला सक्षम समूह जैसे संगठन इस दिशा में ग्रामीण महिलाओं को प्रशिक्षित और समर्थ बना रहे हैं।

कमतू बरोड़ की सफलता इस बात का प्रमाण है कि जब किसी महिला को ज्ञान, संसाधन और सामूहिक सहयोग मिलता है, तो वह किसी भी चुनौती को अवसर में बदल सकती है।

वागधारा संगठन का महिला सक्षम समूह केवल का मंच नहीं है, बल्कि यह महिलाओं के आत्मविश्वास और सामाजिक नेतृत्व का मार्ग है। यहाँ महिलाएँ न सिर्फ सशक्त होती हैं, बल्कि निर्णय लेने, संवाद करने और समुदाय के विकास में भागीदारी निभाने की क्षमता भी विकसित करती हैं।

समूह की मासिक बैठकों में महिलाएँ अपनी समस्याएँ साझा करती हैं, समाधान पर चर्चा करती हैं और सामूहिक निर्णय लेती हैं। इसी प्रक्रिया ने कमतू जैसी महिलाओं को यह एहसास कराया कि वे सिर्फ घर तक सीमित नहीं, बल्कि समाज परिवर्तन की वाहक हैं।

कमतू जब अपने बकरियों को देखती हैं, तो उनकी आँखों में आत्मविश्वास झलकता है। वे कहती हैं, पहले मैं सोचती थी कि गरीबी हमारी किस्मत है, लेकिन जब सीख मिली और साथ मिला, तो समझ आया कि मेहनत और सही दिशा से सब कुछ बदला जा सकता है। सशक्तिकरण का असली अर्थ है अपनी राह खुद बनाना और दूसरों को भी साथ लेकर चलना भी है

वह अब केवल एक सफल बकरी पालक नहीं हैं, बल्कि महिला सशक्तिकरण की प्रतीक बन चुकी हैं।कमतू ने यह साबित कर दिया कि सही प्रशिक्षण, संसाधन और दृढ़ इच्छाशक्ति से कोई भी महिला आत्मनिर्भर बन सकती है। उनकी मेहनत ने यह साबित कर दिया है कि ग्रामीण महिलाएँ यदि अवसर और ज्ञान से लैस हों, तो वे अपने परिवार, और समाज के भविष्य को रोशन कर सकती हैं।
(प्रकाशित सामग्री व तथ्य के लिए लेखक जिम्मेवार हैं। )  





एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ