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जैविक खेती से बदली किस्मत: लक्ष्मण–रखीदेवी की प्रेरक यात्रा

Vikas Meshram

vikasmeshram04@gmail.com

जैविक सोच से समृद्धि तक: नोका गाँव की बदलती कहानी

राजस्थान के बांसवाड़ा जिले के घाटोल ब्लॉक का नोका गाँव बाहर से जितना साधारण दिखता है, भीतर उतनी ही असाधारण कहानी समेटे है। इसी गाँव में लक्ष्मण हरदु चरपोटा का घर और खेत है—जो पहली नज़र में सामान्य लग सकता है, पर भीतर झाँकते ही रचनात्मकता, परिश्रम और दूरदर्शिता की मिसाल बन जाता है। स्थानीय लोग जानते हैं कि यह भील आदिवासी किसान अपनी पत्नी रखीदेवी और परिवार के सहयोग से किस तरह खेती को सीखने का केंद्र बना चुका है।

आज आसपास के गाँवों से किसान उनके खेत देखने आते हैं—जैविक खेती, बहुस्तरीय फसल प्रणाली और आजीविका बढ़ाने के व्यावहारिक गुर सीखने।

जैविक खेती से बदली किस्मत: लक्ष्मण–रखीदेवी की प्रेरक यात्रा



खेत में भी चलता रहता है दिमाग

लक्ष्मण का मानना है—“अच्छा किसान खेत में न भी हो, तब भी काम करता रहता है; उसका मन हमेशा खेती के नए विचारों में लगा रहता है।” यही सोच उन्हें अलग बनाती है। खेत के हर कोने को वे प्रयोगशाला मानते हैं—कहाँ क्या बेहतर किया जा सकता है, कौन-सी फसल अगले मौसम में उपयुक्त होगी, संसाधनों का अधिकतम उपयोग कैसे हो—ये सवाल उनके रोज़मर्रा का हिस्सा हैं।


छह बीघा में बहुस्तरीय समृद्धि

लक्ष्मण और रखीदेवी के छह बीघा खेत में आज विविधता की हरियाली है।

खेत की संरचना

  • कुल भूमि: 6 बीघा
  • फलदार वृक्ष: 90 (अमरूद, केला, नींबू, कटहल, सागवान)
  • सब्ज़ियाँ: 10 से अधिक किस्में (भिंडी, मिर्च, बैंगन, टमाटर, पालक, मेथी आदि)
  • पशुधन: 2 भैंस, 2 बैल, 8 बकरियाँ

वागधारा संस्था के सहयोग से मिले 30 पौधों के साथ बहुस्तरीय खेती अपनाकर उन्होंने हर स्तर पर उत्पादन बढ़ाया। अनाज, दाल, सब्ज़ियाँ, हल्दी और अदरक—सबमें जैविक पद्धतियाँ अपनाई गई हैं।


2024: मेहनत का हिसाब

सब्ज़ी व दुग्ध उत्पाद से आय

  • भिंडी: ₹70,000
  • बैंगन: ₹50,000
  • घी: ₹13,000
  • कुल: ₹1,33,000

पशुधन से आय व बचत

  • 2 भैंस (दूध): ₹50,000/वर्ष
  • 2 बैल (जुताई व परिवहन): ₹30,000 की लागत बचत
  • 8 बकरियाँ: ₹25,000
  • गोबर उत्पादन: 8–10 टन/वर्ष

जैविक संसाधन उपयोग

  • वर्मीकम्पोस्ट: 5 टन/वर्ष
  • गोमूत्र आधारित जैविक कीटनाशक: 300 लीटर
  • रासायनिक खाद पर बचत: ₹60,000/वर्ष

यह एकीकृत मॉडल ऐसा है जिसमें कुछ भी व्यर्थ नहीं जाता—एक गतिविधि दूसरी की ताकत बनती है।


रखीदेवी: आधा बीघा, बड़ा सपना

महिला सक्षम समूह से जुड़ने के बाद रखीदेवी ने आजीविका में विविधता का साहसिक कदम उठाया। आधा बीघा से भी कम भूमि में फूलों की खेती—घर पर ही 1,000 पौधे तैयार किए, बिना बाहरी मज़दूरी।

जैविक खेती से बदली किस्मत: लक्ष्मण–रखीदेवी की प्रेरक यात्रा


2024 में फूलों की खेती

  • कटाई: ~5 क्विंटल
  • आय: ₹38,000–₹40,000
  • बाहरी मज़दूरी: शून्य

यह शुरुआत नहीं, भविष्य की दिशा है। रखीदेवी अब समूह बैठकों में सक्रिय हैं, अनुभव साझा करती हैं और अन्य महिलाओं को आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करती हैं।


शिक्षा में निवेश, भविष्य में भरोसा

सब्ज़ी, फूल और पशुपालन से हुई आय से लक्ष्मण–रखीदेवी ने अपने बच्चों को जयपुर से STC टीचिंग सर्टिफिकेट कोर्स करवाया—यह दिखाता है कि खेती से निकली कमाई कैसे पीढ़ियों का भविष्य गढ़ती है।


साझेदारी से सफलता

वागधारा संस्था का मार्गदर्शन—ग्राम स्वराज समूह और महिला सक्षम समूह—इस परिवर्तन का मजबूत आधार बना। लक्ष्मण ने सुझावों को अपनाया ही नहीं, अपनी प्रयोगधर्मिता से उन्हें और बेहतर किया। बाहरी सहयोग और स्थानीय ज्ञान का यही संगम असाधारण परिणाम लाता है।


समाधान खेत से निकलता है

किसानों के संकट पर बहुत चर्चा होती है; समाधान तब दिखते हैं जब हम लक्ष्मण जैसे उदाहरण देखते हैं। सीमित संसाधनों में भी जैविक खेती, बहुस्तरीय फसल और पशुपालन का एकीकृत मॉडल अपनाकर न सिर्फ आय बढ़ाई जा सकती है, बल्कि पर्यावरण की रक्षा भी की जा सकती है।

लक्ष्मण का लक्ष्य स्पष्ट है—परिवार, समाज और मिट्टी—तीनों का स्वास्थ्य सुरक्षित रखना। यही दृष्टि उन्हें सच्चा संतोष देती है और यही रास्ता दूसरों को जोड़ रहा है।


आगे की राह

रखीदेवी अगले वर्ष फूलों की खेती का विस्तार करेंगी। लक्ष्मण नई फसलों और सुधारों पर काम करेंगे। उनका सपना है कि नोका और आसपास का क्षेत्र जैविक खेती के लिए पहचाना जाए—जहाँ सीखने लोग आएँ।

यह कहानी सिर्फ सफलता की नहीं, दिशा की है। यह दिखाती है कि दृढ़ संकल्प, नवाचार और सही मार्गदर्शन से एक व्यक्ति का परिवर्तन पूरे समुदाय में बदलाव ला सकता है।

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