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सपनों को उड़ने दो

 रवीना 

गरुड़, बागेश्वर, उत्तराखंड

परिंदों को देखकर मचल उठता है मेरा मन,
सोचती हूँ काश मेरे पास भी होते पंख,
तो क्या क्या करती और कहां कहां जाती मैं?
कौन कौन होता मेरा दोस्त?
आकाश में उड़ने पर धरती कैसे दिखती है?
आसमान में बनने वाले इंद्रधनुष को देख पाती,
और बहती हवाओं को महसूस कर पाती,
बादलों संग बहती और बहती चली जाती,
उसका एहसास कैसा लगता मुझे,
इस एहसास से ही मुसकुराती हूँ मैं,
अपने सपनों को खुले आसमान में छोड़ देती हूँ,
परिंदों जैसी उड़ती जाती हूँ मैं,
मेरे सपने भी हकीकत में बदलेंगे,
आसमानों पर नहीं तो ज़मीन पर उड़ूंगी मैं,
लड़की हूँ हर ज़ंज़ीर तोडूंगी मैं,
अपने हर सपनों को पूरा करुँगी मैं।।

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