वन एवं वृक्ष आवरण में अधिकतम वृद्धि राज्य
छत्तीसगढ़ (684वर्ग किमी.),उत्तर प्रदेश (559 वर्ग किमी.),ओडिशा(559 वर्ग कि.मी.) तथा राजस्थान (394 वर्ग कि.मी.) हैं। वनावरण में अधिकतम वृद्धि वाले तीन राज्य- मिजोरम (242 वर्ग कि.मी.), गुजरात (180 वर्ग कि.मी.) और ओडिशा (152 वर्ग कि.मी.) हैं।
वन वितरण में संतुलन नहीं : रिपोर्ट में बताया गया है कि भारत विषम वन क्षेत्र वाला देश है और ओडिशा, मिजोरम और झारखंड जैसे राज्यों में यह बढ़ रहा है। उत्तर-पूर्व और पहाड़ी राज्यों (जैसे उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश) में वन क्षेत्र के अंतर्गत अधिक भौगोलिक क्षेत्र है। जब कि यूपी, बिहार, राजस्थान, हरियाणा, पंजाब आदि जैसे राज्यों में उनके भौगोलिक क्षेत्र का 10 प्रतिशत से भी कम वन क्षेत्र है। यह असंतुलन चिंताजनक है।
भारतीय वन सर्वेक्षण द्वारा प्रकाशित 'इंडिया स्टेट ऑफ फॉरेस्ट रिपोर्ट' के अनुसार, देश का कुल वन और वृक्ष आवरण 8,27,357 वर्ग किलोमीटर है, जो देश के भौगोलिक क्षेत्र का 25.17% है। इसमें वन आवरण 7,15,343 वर्ग किलोमीटर (21.76%) और वृक्ष आवरण 1,12,014 वर्ग किलोमीटर (3.41%) है। हालांकि, इस वृद्धि के बावजूद, भारत में वन क्षेत्र का वितरण असंतुलित बना हुआ है। कुछ राज्य और क्षेत्र राष्ट्रीय वन नीति, 1988 के लक्ष्य—जो भौगोलिक क्षेत्र के 33 प्रतिशत पर वन आवरण की ज़रूरत को पूरा करते हैं, जबकि कई इस लक्ष्य से काफी पीछे हैं। यह असंतुलन जैवविविधता, पर्यावरण संरक्षण और स्थानीय समुदायों की आजीविका पर गहरा प्रभाव डालता है।

वनाच्छादित राज्य : क्षेत्रफल की दृष्टि से सबसे अधिक वन एवं वृक्ष आवरण वाले शीर्ष तीन राज्य- मध्य प्रदेश (85,724 वर्ग कि.मी.),अरुणाचल प्रदेश (67,083 वर्ग कि.मी.) और महाराष्ट्र (65,383 वर्ग कि.मी.) है। जबकि सर्वाधिक वनावरण वाले शीर्ष तीन राज्य- मध्य प्रदेश (77,073 वर्ग कि.मी.), अरुणाचल प्रदेश (65,882 वर्ग कि.मी.) और छत्तीसगढ़ (55,812 वर्ग कि.मी.) हैं। कुल भौगोलिक क्षेत्रफल की तुलना में वन आवरण के प्रतिशत की दृष्टि से, लक्षद्वीप (91.33 प्रतिशत) में सबसे अधिक वन आवरण है, जिसके बाद मिजोरम (85.34 प्रतिशत) और अंडमान एवं निकोबार द्वीप (81.62 प्रतिशत) का स्थान है।
देश के 19 राज्यों-केंद्र शासित क्षेत्रों में 33 प्रतिशत से अधिक भौगोलिक क्षेत्र वनावरण के अंतर्गत हैं। इनमें से आठ राज्यों-केंद्र शासित क्षेत्रों, जैसे मिजोरम, लक्षद्वीप, अंडमान और निकोबार द्वीप समूह, अरुणाचल प्रदेश, नागालैंड, मेघालय, त्रिपुरा और मणिपुर में 75 प्रतिशत से अधिक वनावरण है।
वन क्षेत्र में सबसे अधिक वृद्धि दर्शाने वाले राज्यों में आंध्र प्रदेश (647 वर्ग किमी), तेलंगाना (632 वर्ग किमी), ओडिशा (537 वर्ग किमी), कर्नाटक (155 वर्ग किमी) और झारखंड (110 वर्ग किमी) शामिल हैं। मैंग्रोव आवरण में भी 17 वर्ग किलोमीटर की वृद्धि दर्ज की गई, जिसमें ओडिशा (8 वर्ग किमी), महाराष्ट्र (4 वर्ग किमी) और कर्नाटक (3 वर्ग किमी) शीर्ष पर रहे।
33 प्रतिशत वन आवरण ज़रूरी :प्रमुख तथ्यराष्ट्रीय वन नीति, 1988 के अनुसार, देश के भौगोलिक क्षेत्र का कम से कम 33% वन आवरण के अंतर्गत होना चाहिए। हालांकि, कई राज्यों में यह लक्ष्य अधूरा है, और वन क्षेत्र का वितरण असमान है।
देश के 17 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में 33 प्रतिशत से अधिक भौगोलिक क्षेत्र वन आवरण से आच्छादित है। इनमें मिजोरम 84.53 प्रतिशत, अरुणाचल प्रदेश 79.33, मेघालय 76.00, मणिपुर 74.34, नगालैंड 73.90, लक्षद्वीप, अंडमान और निकोबार द्वीप समूह जैसे क्षेत्रों में 75 प्रतिशत से अधिक वन क्षेत्र है। दूसरी ओर
कई राज्य और क्षेत्र 33 प्रतिशत के लक्ष्य से काफी पीछे हैं। इनमें राजस्थान में कुल वन और वृक्ष आवरण 25,387.96 वर्ग किमी है, जो राज्य के भौगोलिक क्षेत्र का मात्र 7.41% है। उत्तर भारत के मैदानी राज्यों जैसे पंजाब, हरियाणा और बिहार में भी वन आवरण अपेक्षाकृत कम है। यहाँ तक कि पूर्वोत्तर राज्यों, जो जैवविविधता का केंद्र हैं, में भी वन क्षेत्र में कमी देखी गई है। अरुणाचल प्रदेश में 257 वर्ग किमी, मणिपुर 249 वर्ग किमी,नगालैंड 235 वर्ग किमी,मिजोरम 186 वर्ग किमी,मेघालय 73 वर्ग किमी वाले शीर्ष पांच राज्य हैं,जहां वन क्षेत्र में कमी दर्ज की गई है।इनके अलावा कवल (तेलंगाना), भद्रा (कर्नाटक) और सुंदरबन रिजर्व (पश्चिम बंगाल) जैसे संरक्षित क्षेत्रों में भी वन आवरण में भी कमी देखी गई है।
अनेक हैं कारण : भारत के वानिकी क्षेत्र में असंतुलन के अनेक कारण हैं। इनमें प्रमुख है -भौगोलिक और जलवायु भिन्नता। पूर्वोत्तर भारत और पश्चिमी घाट जैसे क्षेत्रों में उच्च वर्षा और अनुकूल जलवायु के कारण घने वन पाए जाते हैं, जबकि मरुस्थलीय क्षेत्रों (जैसे राजस्थान) में वन आवरण सीमित है। इनके साथ ही मानवीय कारण भी महत्वपूर्ण हैं। शहरीकरण, कृषि विस्तार, और औद्योगिक विकास ने कई राज्यों में वन क्षेत्र को कम किया है। नीतिगत और प्रबंधन संबंधी कमियों में अवैध कटाई, खनन और अतिक्रमण पर प्रभावी नियंत्रण का अभाव वन ह्रास का कारण है। इन सब में महत्वपूर्ण है जलवायु परिवर्तन। बढ़ता तापमान और अनियमित वर्षा पैटर्न वन पारिस्थितिकी तंत्र को प्रभावित कर रहे हैं, खासकर पूर्वोत्तर और हिमालयी क्षेत्रों में।
कहा जा सकता है कि भारत में वन क्षेत्र में वृद्धि एक सकारात्मक संकेत है,लेकिन वन आवरण का असमान वितरण एक चिंता का विषय है। पूर्वोत्तर राज्यों में वन ह्रास और कम वन आवरण वाले क्षेत्रों मेंलक्ष्य से दूरी चिंताजनक है। सतत वन प्रबंधन, नीतिगत सुधार और सामुदायिक भागीदारी के माध्यम से इस असंतुलन को दूर करना आवश्यक है, ताकि पर्यावरण संतुलन, जैवविविधता संरक्षण और जलवायु परिवर्तन से निपटने में यह अंसतुलन मिटाया जा सके। (The author is responsible for all material published)
Mob. 9829210036
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