-हरीश शिवनानी
पूरी दुनिया का ध्यान इस समय जब ईरान- इज़राइल और गाजा संघर्षों में उलझा है, इसी दौर में भारत,अमेरिका सहित अनेक देश एक अन्य महत्वपूर्ण मुद्दे पर उलझे हैं। यह मुद्दा है धरती के गर्भ में पाए जाने वाले उन 17 दुर्लभ खनिजों का, जिनके बगैर ऑटोमोबाइल और सैन्य-रक्षा सहित विभिन्न इलेक्ट्रॉनिक्स उपकरणों का निर्माण संभव नहीं। पिछले कुछ महीनों में हालात ज़्यादा विकट होने लगे हैं। इसी के चलते अमरीका को चीन से जिनेवा समझौता रद्द करना पड़ा तो भारत ने भी जापान से समझौता निलंबित करने की प्रक्रिया शुरू कर दी है। ‘रेअर अर्थ’ की श्रेणी में आने वाले दुर्लभ खनिज केवल वाणिज्यिक,औद्योगिक संसाधन मात्र नहीं हैं, ये तकनीकी संप्रभुता, रक्षा तैयारियों और भविष्य की औद्योगिक,आर्थिक व सैन्य महाशक्ति बनने की संभावनाओं की नींव हैं। इनमें भी रेअर अर्थ मैग्नेट खासा महत्वपूर्ण है।
भंडार दुनिया भर में लेकिन लीडर चीन
यूएस भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण डेटा पर आधारित एक नये ग्लोबल मैप के मुताबिक यों तो कई देशों में इन दुर्लभ तत्वों के भंडार हैं लेकिन सर्वाधिक चीन में 44 मिलियन मीट्रिक टन भंडार है। चीन के बाद अफ्रीका, खास तौर पर मोरक्को और दक्षिण अफ्रीका में प्रचुर मात्रा में जस्ता, लिथियम और कोबाल्ट के भंडार हैं, जो रिन्यूवल एनर्जी के लिए सबसे ज्यादा जरूरी हैं। वहीं दक्षिण अमेरिका के चिली और ब्राजील में इलेक्ट्रिक वाहनों के लिए आवश्यक विशाल लिथियम भंडार हैं तो यूक्रेन में टाइटेनियम और लिथियम और ग्रीनलैंड में दुर्लभ अर्थ मेटल्स और प्राकृतिक गैस के विशाल भंडार हैं। दिक्कत यह है कि इन देशों में इसकी खुदाई और प्रोसेसिंग बहुत महंगी है। इससे भारी मात्रा में प्रदूषण भी निकलता है। इन सब में चीन के पास ही इनकी प्रोसेसिंग की क्षमता है। वर्तमान में दुलर्भ पृथ्वी धातुओं का 61 प्रतिशत भंडार चीन में है और पूरी दुनिया में 90 फीसदी वही निर्यात करता है।
चीन के हथियार हैं दुर्लभ तत्व
चीन इन दुर्लभ तत्वों को हथियार के रूप में इस्तेमाल करता है। कुछ समय पहले उसका जब जापान के साथ सीमा विवाद हुआ था तो उसने जापान को इनकी आपूर्ति रोक दी। इसी तरह अपनी दूसरी पारी में अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प ने अपनी टैरिफ दरों में बेतहाशा वृद्धि कर दी तो बदले में चीन ने फिर इस हथियार का इस्तेमाल किया। मजबूर होकर अमेरिका को इस संबंध में जिनेवा समझौता रद्द कर नया लंदन समझौता करना पड़ा। इन दुर्लभ खनिजों की सप्लाई चेन चीन के हाथ में होने से कई देश ज़रूरत पड़ने पर बेबस हो जाते हैं।
आत्मनिर्भरता की ओर कदम
इस हालात को देखते हुए भारत ने अपने दुर्लभ खनिजों को रणनीतिक संपत्ति की तरह देखना शुरू कर दिया है। इसी रणनीति के चलते भारत ने पिछले 13 वर्षों से जापान के साथ चल रहे समझौते को निलंबित करने की प्रक्रिया शुरू कर दी है। जिसके तहत ‘इंडियन रेयर अर्थ्स लिमिटेड’
द्वारा खनन किए गए दुर्लभ खनिज, विशेषकर नियोडिमियम जापान भेजे जाते थे, लेकिन अब भारत ने तय किया है कि वह अपने घरेलू उद्योगों की ज़रूरतों को प्राथमिकता देगा और चीन पर अपनी निर्भरता कम करेगा। इसी उद्देश्य के साथ ‘इंडियन रेयर अर्थ्स लिमिटेड’ ने सरकार से अब घरेलू स्तर पर प्रसंस्करण और रिफाइनिंग की क्षमता विकसित करने के लिए चार नए खदानों की मंजूरी मांगी है।
दरअसल ये खनिज निकालना ही काफी नहीं है,उससे मैग्नेट बनाना, फिर उन्हें औद्योगिक उपयोग के योग्य बनाना एक लंबी तकनीकी प्रक्रिया है। भारत को वैश्विक आर्थिक महाशक्ति बनने के लिए यह अब अनिवार्य हो गया है कि दुर्लभ तत्वों की तकनीक में अपने धुर प्रतिद्वंद्वी देश पर निर्भरता को घटाते हुए आत्मनिर्भरता के प्रयास किए जाएं। सरकार अब इस दिशा में सक्रिय भी हुई है और जल्द ही दुर्लभ खनिजों के प्रसंस्करण तथा मैग्नेट निर्माण इकाइयों को स्थापित करने वाली कंपनियों को प्रोत्साहन देने की योजना तैयार कर रही है। यही वो पथ है जो भारत को आत्मनिर्भर बनाकर वैश्विक आर्थिक महाशक्ति बनाएगा।
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